समर्थन वापसी के बाद से यू के ड़ी बॅटी बॅटी सी नजर आ रही थी । जहॉ एक तरफ केन्द्रीय अध्यक्ष के फैसलों ने दिवाकर एण्ड़ कम्पनी के ख्ेामें में खलबली मचाई हुई थी वही अब त्रीवेन्द्र सिंह पंवार ने दिवाकर भट्ट का पर्टी से आजीवन निष्कासन का एलान कर दिया है । इससे पहले अध्यक्ष ने मंत्री जी को कारण बताओ नोटिस जारी किया था साथ उन्हे ये भी कहा गया कि उन्होने अभी तक सरकार कोे इस्ताफ क्यो नही सौपा । लेकिन ना ही दिवाकर की तरफ से कोई बयान आया और ना ही उनक इस्तीफा । और ऐसे में पार्टी ने ये फैसला कर लिया कि उन्हे पार्टी से बाहर का रस्ता दिखाऐं । लेकिन पार्टी का ये फील्ड़मार्शल पार्टी में अपनी अनुशासनहीनता के लिए जाना जाता है । इससे पहले भी दिवाकर पार्टी से अलग हुए है । पहले उत्तराखंड आंदोलन के दौरान संगठन 1996 में टूटा। उस समय भी दिवाकर भट्ट ने संगठन को कमतर आंकते हुए खुद को पार्टी का खुदा समझा और दल से अलग हो गये। समय के साथ पार्टी का कदमताल देख 1999 में दिवाकर फिर यूकेडी में शामिल हुए, और आपसी मतभेदों को दूर कर पार्टी का फिर एकीकरण हुआ। 2000 में राज्य का गठन हुआ। चार विधायकों के साथ प्रदेश की पहली भाजपानीत सराकर में यूकेडी भी भागीदार बनी। सत्ता की मलाई चाटने के बाद 2003 में यूकेडी फिर बिखर गई। अफसोस कि तब भी बिखराव के कर्ताधर्ता दल के फिल्डमार्शल दिवाकर भट्ट थे। पार्टी ने फिर से दिवाकर भट्ट को बाहर का रास्त दिखाया। उस समय उक्रांद को क्षेत्रीय दल की मान्यता मिली थी और इस टूटन के बाद दल की मान्यता पर भी खतरा मंडराया लेकिन दल अपनी मान्यता बचाने में सफल रहा। दो साल बाद पार्टी की मजबूत स्थिति को देखते हुए मौजूदा काबीना मंत्री दिवाकर भट्ट यूकेडी में शामिल हो गये। अपने जन्म से ही टूटने, जुड़ने और विखरने का दंश झेल रही यूकेडी एक बार फिर विखराव के कगार है इस बार भी दिवाकर भट्ट बिखराव के कर्ताधर्ता है। लेकिन इस बार पार्टी उन्हें बकासने के मूड़ में नहीं है। पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष त्रिवेंद्र सिंह पंवार के कठोर निर्णय के बाद आखिरकार इस फिल्डमार्शल का कोर्टमार्शल करते हुए पार्टी से आजीवन निष्कासन कर दिया है। ऐसे में खैट पर्वत की ऊंचाई तक चढ़ चुका बुजुर्ग दिवाकर भट्ट का राजनीतिक करियर पर फुल स्टाप नजर आ रहा है। लेकिन राजनीतिक समीकरण कब बदल जाये कोई कह नहीं सकता।