Monday, March 25, 2013


                                   
प्रतापनगर के बाशिदों,
यह वक्त अंधेरी कंदराओं में सोने का नहीं है और ना ही यह समय नेताओं और उनके चाण-बाणों की बातों में आकर, सपनों की दुनिया में खो जाने का है, आज वक्त तुम्हें पुकार रहा है, सालों से समय तुम्हारे धैर्य की परीक्षा लेता रहा लेकिन अब नहीं! अब समय हमारा होगा, लेकिन उसके लिए हमें अपने आपको मजबूत करना होगा, पिछले कई दशकों से जो हमारे हालात बने हैं उसके दोषी जितने अन्य लोग हैं उससे कहीं ज्यादा दोषी हम खुद भी है। लिहाजा इन तमाम दोषों से मुक्त होने के लिए हमें एकजुट होकर अपनी आवाज बुलंद करनी होगी।
लालघाटी के बाशिंदों....! तुम्हें अपनी मातृभूमि की सौगंध, तुम्हें अपनी पवित्र भूमि की पीड़ा को समझना होगा, जो करवट तो बदलना चाहती है लेकिन ऐन वक्त पर तुम्हारा साथ छूट जाता है। ........ जरा गौर करो, सोचो और समझो, प्रसव वेदना से जूझती उन महिलाओं की दर्दभरी चीखें....जो पहाड़ों में टकराती हुई खामोश हो जाताी है, उन चुप होती आवाजों को हमें किलकारी में बदलना होगा.... हमें खामोश होते उन शब्दों को अल्फाज देने होंगे जो इलाज की खातिर रास्तों में ही दम तोड़ देते हैं।.... हमें अबोध बच्चों की तुतलाती जुबान को ध्यान से सुनना होगा जिनकी चाहत, सपनों के आसमान में उड़ने से पहले ही दम तोड़ देती है। उन उदास चेहरों के फीके पड़ते रंग को समझना होगा जिनकी आंखों में सुनहरे कल के सपने ओझल हो रहे हैं। महिलाओं की टूटती उम्मीदों को बटोरना होगा जिनकी कमर बोझ के चलते झुकती जा रही है। हमें उन लोगों के त्याग को आत्मसाथ करना होगा जिनकी उंगलियां हमारे उजज्वल भविष्य के खातिर पत्थरों से टिलने से चोटिल हुई। हमें उन जख्मों से मिले दर्द को भी समझना होगा जो हमारे पुरखों कोे अखंड और मजबूत पहाड़ों को धराशाही करने पर मिले। लालघाटी के बाशिदों! अपने भविष्य की पौध के लिए हमारे पुरखों ने तमाम झंझावतों के बाद भी कभी उफ तक नहीं की, और ना ही अपने चेहरे पर कभी दर्द की लकीरें पड़ने दी। उनकी हथेली पर पड़े मेहनत के छाले बताते हैं कि वो अपनी आने वाली पौध के लिए कितने फिक्रमंद थे।
लालघाटी के बाशिंदों....! आज प्रतापनगर किसी बूढ़े आदमी की तरह झील के उस पर उदास और खामोश बैठा है। उसकी आंखों में भविष्य के सपने दम तोड़ रहे हैं और झील का गहरा नीला रंग उसे भयभीत कर रहा है। प्रतापनगर आज डरा हुआ है उसकी औलादें उसे छोड़कर धीरे-धीरे महानगरों की ओर रूख कर रही है, यह सिलसिला कभी थमेगा भी नहीं, यह सोच उसे सदमा पहुंचाती है। लालघाटी के बाशिदों...! जिस झील को देश विकास का प्रतीक बताता है और जिससे पैदा की गई बिजली से हर रोज नहाता है, वही झील हमारे लिए बाड़ बन गई है। ऐसी बाड़ जिसे हम जला भी नहीं सकते, गहरे नीले पानी की ये बाड़ हमारे हौंसलों को हर रोज पस्त कर देती है, हमें लंगड़ा बना के रख दिया है और हमें चलने के लिए मात्र स्यांसू और पीपलडाली पुलों की बैसाखी थमा दी है। लेकिन हम हिम्मत नहीं हारेंगे, हमें अपना हक लेना होगा, प्रतापनगर के भाविष्य के खातिर हमें झील की बाड़ को लांघना होगा, हमें चांटी-डोबरा पुल के लिए लड़ना होगा साथियों, जिसे झील निर्माण से भी पहले बनना चाहिए था लेकिन हमारे दब्बूपन के कारण झील निर्माण के डेढ़ दशक बाद भी बन नहीं पाया और भी दूर-दूर तक इसके बनने की संभावनाएं भी नहीं दिखती।
जरा सोचिए कि आखिर अपने हकों के लिए प्रतापनगर का हर वो शख्स क्यों ठिठक गया, जिसके रगों में स्वाभिमान का खून दौड़ता है, आखिर लालघाटी के लालों ने अपने हक के लिए चुप्पी क्यों साध रखी है। आखिर क्यों ठिठक गये हो तुम, या फिर तुम्हें रोका गया। लालघाटी के बाशिदों तुम्हारा भविष्य सवाल कर रहा है कि यह स्थिति क्यों आ पड़ी है। क्या यह स्थिति तुमने खुद स्वीकारी है या फिर तुम पर जबरन थोपी गई है। खैर जो भी हो हमें अपने अंदर जमी सीलन और काई को साफ करना होगा, वरना दशकों इस दंश को झेलना पडे़गा।
लालघाटी के बाशिदों...! इस त्रासद काल से बाहर आना होगा। ठीक ही कहा था आचार्य चाणक्य ने जिसमें बदलने का साहस नहीं होता, उन्हें स्थितियों को सहना पड़ता है, लिहाजा अगर अभी स्थितियों को नहीं बदला जायेगा तो हमें ऐसे ही जूझना पड़ेगा। इसीलिए लालघाटी के वाशिदों यंत्रणाओं से हारकर तो हर कोई मर सकता है लेकिन यंत्रणाओं पर विजय पाकर बहुत कम मुक्त होते हैं। हम रहे या ना रहे इससे क्या फर्क पड़ता है लेकिन फर्क भविष्य पर जरूर पड़ेगा, क्योंकि भविष्य को हम लंगड़ा प्रतापनगर सौंप कर क्या उत्तर देंगे यह समझना होगा। लिहाजा लालघाटी के वाशिदों अपने सामथ्र्य को पहचानो, जो स्थितियों हमें मुंह चिढ़ा रही है और हमें चुनौती दे रही है इन स्थितियों से हमें लड़ना होगा और इन बाधाओं और वर्जनाओं को तोड़ना होगा, लिहाजा नवीन संरचनाओं को बुनना होगा।
लालघाटी के लालों चुनौतियों को देख निराश मत होना, तुम्हें अपने हक के लिए प्रयास करना होगा क्योंकि भविष्य के शिल्पी तुम हो और प्रतापनगर का भाग्य तुम्हें ही लिखना है।
 प्रदीप थलवाल