Sunday, October 27, 2013

मनमानी

.... , क्या लिखूं, क्या बोलूं, कुछ समझ में नहीं आता, मैं यह सब क्यों लिख रहा हूं, नहीं मालूम, सच्ची नहीं मालूम, लेकिन लिखने का मन करता है, लिखने से ज्यादा बोलने का मन करता है, मन में बेवजह एक अंतहीन द्वंद हर वक्त छिड़ा रहता है।, क्या है ये द्वंद और क्यों हैं। सवाल उठते हैं लेकिन उससे पहले ही खत्म भी हो जाते हैं, लाख बार कोशिश करता हूं कि यह मन की मनमानी खत्म हो लेकिन हर कोशिश के बाद दोगुनी हो जाती है। खामोश हो जाता हूं, तो फिर खामोशी मुझे डरा देती है, चुप क्यों हो, सवाल हजार होते हैं, सोचूं तो दर्द सर में उठता है, फिर भी पार नहीं पाता हूं आपने आप से, अपने मन के द्वंद से, मन मस्तिष्क स्थिर रहे कोशिश करता हूं। अपने आप का मनोबल बढ़ाता हूं, लेकिन मनोबल टूटता नहीं, कहीं-कहीं और कभी-कभी कमजोर पड़ता है, पता नहीं क्यों ऐसा होता है, ये बिखराव क्या है, आखिर क्यों अटक जाता है मन मेरा?  कोई कारण नहीं, फिर निवारण क्या? काश कोई समझता मेरे मन को भी और मन के मामले को भी।