प्रेम, प्यार, मोहब्ब्त.... ये शब्द जिंदगी की पटरी पर जरूर टकराते हैं, कोई इन्हें जिंदगी में रचा-बसा लेते हैं, तो किसी को ये अधूरे आखर जिंदगी भर अखरते रहते हैं। जरा सोचिए.... प्यार करने से पहले अगर आपने कोई मापदंड बना रखे है तो फिर क्या होगा? प्यार-प्यार की तरह अधूरा रहेगा, शायद इसीलिए दिललगी के इन शब्दों को एक अधूरा अक्षर मिला। हर किसी की रूचि अलग होती है, हर किसी की सोच अलग होती है, रूकिये और उस पल को याद कीजिए जब आपने किसी से प्यार किया, क्या सोचा था आप ने उस वक्त? आपने अपने प्यार का न रूप देखा और न सौदर्य। बस दिवाना हो चले। लेकिन अब आपने मापदंड की कमेटी बना दी। और हर चीज के तोलने बैठ गये। नाक-नक्श से लेकर कद-काठी वगैरह-वगैरह। चलिए छोडिए... लेकिन आपको बता दें कि प्यार के इस मापदंड से आपने दिल से इंसान को समझने का मौका खो दिया। क्योकि अब आपके जेहन में प्रेम की जगह शर्तों ने डेरा जमा दिया। फिर क्या दो दिलों को एक करने वाले ये आखर भी कभी पूरे नहीं हो पाये। सदियां गुजर गई और ये आखर आज भी पूरे होने का सपना पाले हुए है। वो सपना जो दो दिवाने अक्सर पाला करते हैं। शर्तो के आगे ये भी वेबस और लाचार हैं,
प्रदीप थलवाल।