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प्रदीप थलवाल, पत्रकार |
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चंद्रापुरी रुद्रप्रयाग |
आंखों देखी --------
रूद्रप्रयाग से 26 किलोमीटर दूर बसा चंद्रापुरी गांव, कभी चार धाम यात्रियों का आकर्षण का केंद्र हुआ करता था। लेकिन 16-17 जून को केदारघाटी में आई भीषण आपदा ने चंद्रापुरी को भारी जख्म पहुंचाये। नतीजतन आज चंद्रापुरी खामोश आकर्षण का केंद्र बनकर रह गई।
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आपदाग्रस्त इलाका (रुद्रप्रयाग ) |
चंद्रापुरी के बगल से मंदाकनी नदी बहती है। यही नदी चंद्रापुरी को सरसब्ज करती रही, लेकिन इस साल मंदाकिनी के रौद्र रूप ने सब कुछ रौंद डाला। चंद्रापुरी वासियों ने कभी कल्पना भी नहीं की कि मंदाकनी का यह रूप भी देखेंगे। गांव के एक बुजुर्ग बताते हैं कि ऐसी भीशण तबाही हमने अपने जिंदगी में कभी नहीं देखी, यहां तक कि हमारे बाप, दादा और परदादा ने भी मंदाकिनी को गुस्से में नहीं देखा। लेकिन इस बार मंदाकनी का कभी न दिखने वाला रूप देखने को मिला। चेहरे पर लंबी सफेद कुछ-कुछ पीली पड़ चुकी दाड़ी वाले बाबा दूर से ही चिल्लाते हैं कि सब कुछ चैपट हो चुका है। आपदा ने कहीं का नहीं छोड़ा, खाने के लिए कुछ नहीं और रहने और पहनने की बात ही छोड़ दीजिये। बाबा की आवाज पहले कड़क लेकिन अपनी पीड़ा बताते-बताते पस्त पड़ने लगी। उनकी आंखों में भय साफ झलक रहा था। यह भय आपदा के दिये जख्मों का भी था और भविष्य को लेकर भी।
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स्थानीय बुजुर्ग |
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चंद्रापुरी : टेंटों में रहते लोग |
चंद्रापुरी पहुंचने में पूरा एक दिन का समय लगा, गंगानगर से पैदल सफर और ‘रेड़ी’ की दम निकाल देने वाली चढ़ाई। तेज धूप और खड़ी चढ़ाई अहसास करवाती है कि पहाड़ को समझना आसान नहीं है, इसे समझने के लिए पहाड़ जैसा हौसला चाहिए। ‘रेडी’ की खड़ी चढ़ाई के बाद दूसरी ओर तीव्र ढाल, पैर फिसले तो सीधे गदेरे में समाने का खतरा। ढाल खत्म होते ही सामने हाट गांव। हाट गांव भी मंदाकनी नदी के एक छोर पर बसा हुआ है। गांव के लोग बताते हैं कि वो भी विपदा के मारे हैं। उनकी कई एकड़ कृषि भूमि मंदाकनी बहा ले गयी। सारे रास्ते और बाटे-घाटे नदी में समा गये। आने-जाने की विकट समस्या। जिंदगी जैसे ठहर चुकी है। हाट गांव जैसे हालात और तकलीफ अड़ोस-पड़ोस के गांव भी भोग रहे हैं। लाचार और बदहवास जिंदगी, उम्मीदों के उत्सवों की जगह भय का भंवर हर रोज जिंदगी को निगलता हुआ। हाट से आगे एक और चढ़ाई, फिर आता है कुंड गंाव। गांव पहुंचने से पहले तप्पड़ (समतल जमीन) पर नजर आते तंबू। इन तम्बूओं में दो-दो परिवार एक साथ। बच्चे, महिलाएं और उनके पुरूष। न रोजगार और न खाने-खिलाने के संसाधन, बस खाली हाथ। शाम का समय, धूमिल होती सूरज की किरणे और पहाड़ों को ढ़कता अंधेरा तेजी से बढ़ता हुआ। एक अजीब सा वातावरण, घर लौटते लोग। कुछ बुदबुदाते हुए कुछ फीकी मुस्कान लिये पगडंडियां चढ़ते हुए। चेहरों पर झलकता त्रासदी का सच तो अच्छे कल की उम्मीद भरी लकीरें भी।
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प्रेम सिंह पंवार, कुंड गाँव |
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मृतक राजेंद्र की मां कमला देवी |
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मृतक राजेंद की पत्नी माहेश्वरी, माँ और बच्चे |
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मृतक राजेंद्र के पिता गोपल सिंह बिष्ट |
कंुड गांव के ठीक नीचे ‘अखुरू नौली’ गांव जो मंदाकनी में समा रहा है। गांव का एक हिस्सा जिसमें कई मकान, एक प्राथमिक विद्यालय, कृषि भूमि जिन पर आजकल कोदा-झंगोर और साटी की फसलें लहलहा रही है सारा का सारा मंदाकिनी ओर सरक रहा है। अखुरू के लोग अपने मकान छोड़ तम्बुओं में दिन काट रहे हैं, गांव के लोग परेशान हैं ‘‘कहते हैं कि इधर न कोई खाने का और न रहने का साधन है। बस मजबूरी है इन पहाड़ों में रहने की, इन्हें छोड़कर जा भी कहां सकते हैं साहब’’। इसी गांव का एक बेटा राजेंद्र सिंह प्रलय के दिन से गायब है। दो बच्चों का बाप राजेंद्र केदारनाथ में खच्चर चलाया करता था। लेकिन इस बार जलप्रयल ने उसे हमेशा के लिए एक किवदंती का हिस्सा बना दिया। ऐसी किवदंती जिसे समाज न नकार पा रहा है और ना स्वीकार। राजेंद्र की मां कमला देवी बेटे के लापता होने की खबर से गुमसुम हैं। हर वक्त बेटे की फोटे सीने से लगाकर आंखों से आंसू बहाती है। इकलौते बेटे के इस दुनियां में न रहने से पिता गोपल सिंह बिष्ट अपने भाग्य को कोसते हुए कहते हैं
कि केदारनाथ ने उन्हें तो बचा दिया लेकिन बेटा, दामाद और नाती से महरूम कर दिया। अपनी आपबीती सुनाते हुए बिष्ट फफक पड़ते हैं। 28 वर्षीय राजेंद की पत्नी माहेश्वरी बदहवास जिंदगी जीने को मजबूर है।
अपने बच्चों की ओर नजरें करके वह कहती है कि उसका भविष्य यही है उनकी परवरिश ही उसका मकसद है। गांव के लोग भी इस त्रासदी से आहत हैं।
रात का अंधेरा पहाड़ों को लीलता हुआ, समूचे पहाड़ सुनसान, चारों ओर मुर्दनी छाई हुई। बिजली का कहीं कोई अता-पता नहीं। आपदा के दो महीने बाद भी बिजली का ना आना सरकार की विफलता को इंगित करता है।
कुंड गांव के प्रेम सिंह पंवार कहते हैं ‘‘ये है ऊर्जा प्रदेश का सच, यहां बांध तो बनते हैं, लेकिन बिजली शहरों के लिए पैदा की जाती है, पहाड़ के गांव के गांव डुबो दिये जाते हैं, लेकिन बिजली नहीं मिलती, और ना ही कोई आर्थिक लाभ, सिर्फ विपदा ही नसीब में रह जाती है। मंदाकनी की तबाही के बारे में पंवार बताते हैं कि मंदाकिनी का रास्ता बदला और यहां बाढ़ जैसे हालात के लिए सिर्फ और सिर्फ बांध जिम्मेदार है। जिसके मलबे ने लोगों के खेत-खलियान से लेकर घर तक ध्वस्त कर दिये। वह कहते हैं कि जब से बांध बनाये गये तभी से प्रदेश में आपदा बरप रही है। खैर ऊर्जा प्रदेश में रात भर बिजली का इंतजार किया लेकिन बिजली के दर्शन नसीब नहीं हुए।
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चंद्रापुरी : सब कुछ ख़त्म |
अगले रोज चंद्रापुरी के क्षत-विक्षत वाले हिस्से पहुंचे, उफनती मंदाकनी पास से गुजरती हुई और उसके दोनों ओर जख्मी हालत में चंद्रापुरी अपनी स्थिति को बयंा करता हुआ। धान का आधा सेरा रेत से सना पड़ा, आधे से ज्यादा मंदाकनी बहा ले गई और थोड़े बहुत हिस्से पर धान की फसल असल स्थिति को बयां करती हुई। मंदाकनी के तेज बहाव से बचे-खुचे खण्डर मकान और चंद्रापुरी गांव का बह चुके झूला पुल की तारें मानों सिर्फ त्रासदी के भयावहता को दिखाने के लिए श्रापग्रस्त हो। पचास से भी ज्यादा हरिजन परिवारों के बसेरे का भूगोल बदल चुका है। रघुवीर लाल कहते हैं कि
चंद्रापुरी में हरिजन परिवार सबसे ज्यादा रहते हैं। कई लोगों के मकान मंदाकनी बहा ले गई, साथ ही खेत और गांव के मंदिर समेत कानूनगो की चैकी भी आदपा की भेंट चढ़ गई। रघुवीर कहते हैं कि दो महीने होने को हैं लेकिन यहां सरकार की ओर से कोई मदद नहीं पहुंची। हां, पटवारी एक दफा जरूर आया हमने उनको अपनी स्थिति से अवगत कराया लेकिन उसके बाद वे यहां पलटकर भी नहीं आया।
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चंद्रापुरी: अंधकारमय भविष्य |
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आपदा प्रभावित प्रेमलाल |
पेशे से ड्राइवर पे्रम लाल कहते हैं कि
चंद्रापुरी के लिए एक हेलीकाप्टर से राशन आया लेकिन इलाके के कुछ प्रभावशाली लोगों ने हेलीकप्टर को नदी पार उतारा, और चंद्रापुरी बाजार के लोगों को रसद बांटी। वह कहते हैं कि चंद्रापुरी गांव के नाम पर चंद्रापुरी बाजार के लोग लाभ उठा रहे हैं जबकि उनका कोई नुकसान नहीं हुआ। रघुवीर, प्रेमलाल और कई ग्रामीण अपनी पीड़ा बयां करते हैं, कुछ लोग नाराजगी जताते हुए कहते हैं कि बड़ी मुश्किल से उन्हें एनजीओ वालों ने टंेट दिये, उनके अंदर वह अपनी जिंदगी गुजार रहे हैं लेकिन अब प्रशासन के नए फरमान से वह व्यथित हैं। प्रेम लाल कहते हैं कि प्रशासन ने गांव वालों को होटलों में ठहरने के लिए कहा है जिसका पैसा सरकार देगी लेकिन उनकी मवेशियों का क्या होगा, जो उनकी आर्थिकी का हिस्सा है। वह कहते हैं प्रशासन के उटपटांग फैसले से गांव के लोगों में नाराजगी है। चंद्रापुरी में कई लोग अपनी दास्तां बयां करते हुए सरकार, प्रशासन और अपने प्रतिनिधियों को जमकर कोसते हुए नाराजगी भी व्यक्त करते हैं।
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चंद्रापुरी : एनजीओ के भरोसे स्कूल |
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स्कूल पर भी आपदा की मार |
आपदा से हुए नुकसान का पाई-पाई हिसाब गांव का युवक भी चाहते हैं। इस साल कालेज में प्रवेश करने वाला आकाश जोशी कहता है कि छह घंटे उन्हें कालेज आने-जाने में लगते हैं पढ़ाई के लिए वक्त निकालना संभव नहीं हो पाता है क्योंकि घर के काम-काज में भी हाथ बंटाना पड़ता है। नदी के किनारे की ओर इशारा करता हुआ आकाश कहता है कि कभी यहां पर स्कूल हुआ करता था लेकिन नदी बहा ले गई, स्कूल ना होने का खामियाजा गांव के कई छोटे बच्चे भुगत रहे हैं।
वह कहता है कि जब एक एनजीओ गांव के बच्चों को पढ़ा सकता है तो फिर सरकार ऐसा क्यों नहीं कर पाती। यह सही है कि आपदा ग्रस्त इलाके में स्कूलों की हालत गंभीर है। इन इलाकों में सरकार के शिक्षा के कई अभियान गायब है, और पहाड़ के नौनिहाल आखर बांचने से पूरी तरह वंचित हो चुके हैं।
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मंदाकनी का कहर |
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जोखिम में जान |
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हताश और निराश लोग |
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कठिन है डगर |
चंद्रापुरी गांव से सटा जंगल भी भूस्खलन की चपेट में है। जंगल से धीरे-धीरे मलबा घरों की ओर सरक रहा है। गांव के लोगों का कहना है कि इस पहाड़ के अंदर से एल एंड टी की सुंरग जानी है। लेकिन अभी से ही पहाड़ दरक रहा है। जो कि भविष्य में भारी नुकासन की चेतावनी दे रहा है। गांव के लोग भयग्रस्त हैं कि आखिर उनकी सुनवाई क्यों नहीं हो रही है। लोग बताते हैं कि कुछ लोग यहां मदद करने आये थे, नदी पार से उन्होंने कुछ राशन भी दी। साथ ही न्यूजीलैंड के एक राफ्टर ने चंद्रापुरी की हालत को देखते हुए एक ट्राली लगाई। लेकिन कुछ नेता टाईप लोगों ने इसे भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कुछ दिन बाद ट्राली खराब हुई तो फिर वे लोग उसे सही करने नहीं आये जो इसे अपनी उपलब्धि बता रहे थे।गांव के लोग हर किसी से अपना दुखड़ा सुना रहे हैं लेकिन दो महीने बाद भी सरकार की ओर से चंद्रापुरी जैसे गांवों के लिए कोई भी व्यवस्था नहीं हुई। गांव के लोग सरकार के काम-काज से बेहद नाराज हैं, तो जनप्रतिनिधियों के रवैये से भी भारी निराश।
खैर केदारघाटी की मौजूदा उदासी में वहां की वेदना समाई हुई है। वहां जख्मों में बिखरा ऐसा शोकगीत है जो पीढि़यों बाद भी नहीं भुलाया जायेगा।
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जान हथेली पर |
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विनाशकारी बांध , एल एंड टी की सुरंग |
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पहाड़ जैसा हौसला |
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बांध कंपनी पर भी आपदा की मार |
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ख़त्म हुए आशियाने |
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स्कूल के आगे नदी, कभी कोसों दूर बहा करती थी |
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पुल भी बहा ले गई मंदाकनी |
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