Saturday, August 21, 2010
नाम की राजनीति
मंगलवार को कैबिनेट ने भले ही राज्य हित में कई फैसले लिए हो। लेकिन एफिलिएटिंग यूनिवर्सिटी का नाम पं. दीन दयाल उपाध्याय रख कर अपने ही पैर पर कुल्हाडी मार दी। पिछले काफी लंबे समय से एफिलिएटिंग यूनिवर्सिटी को लेकर प्रदेश भर में आंदोलन हो रहे थे। इस यूनिवर्सिटी को बसाने के लिए बकायदा चमेाली, टिहरी, उत्तरकाशी और देहरादून अपनी-अपनी दावेदारी ठोक रहे थे। कैबिनेट ने इस यूनिवर्सिटी को टिहरी में बसाने की मंजूरी तो दी लेकिन यूनिवर्सिटी के नाम पर एक बार फिर से अपनी पुरानी कुटिल चाल चल दी। हद तो तब हो गयी जब कैबिनेट ने टिहरी के अमर शहीद सुमन श्रीदेव और पहाड़ के गांधी कहे जाने वाले स्वर्गीय इंद्रमणी बडोनी के नाम को दर किनार कर दिया। जिससे साफ हो चला है कि प्रदेश सरकार अपने इन महान विभूतियों को तवज्जो नहीं देना चाहती। यूनिवर्सिटी का नाम पं.दीन दयाल उपाध्याय कर एकबार फिर से भाजपा सरकार ने उत्तराखंड की सरजमीं पर नामों की राजनीति की पुरानी यादें ताजा कर दी है। जिससे प्रदेश भर में एक नया विवाद सिर उठाने लग गया है। आखिर ऐसी क्या वजह थी कि कैबिनेट ने प्रदेश के महान सपूतों के नाम पर यूनिवर्सिटी का नाम न रख पं. दीन दयाल उपाध्याय के नाम पर मुहर लगा दी। जबकि पं. दीनदयाल उपाध्यान का प्रदेश हित में कोई अहम योगदान नहीं है। ऐसे में साफ हो चाल है भाजपा ने एक बार फिर से नामों की राजनीति का सिलसिला शुरू कर दिया है। लेकिन सवाल ये उठता कि आखिर क्या कभी प्रदेश में अपनों के नाम पर कभी किसी संस्थान का नाम होगा भी या नहीं।
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ise hi to khte hai vinash kale vipreet buddhi
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