Wednesday, November 16, 2011

विरासत की बिडंबना

हे! हिमालय के वंशजों
ये कैसी विरासत छोड़ गये
गम दे गये जीवन में
अकेलापन और घुटन भी दे गये।
खिलखिलाती हंसती जिंदगी में
ये कैसी विरासत दे गये
दर्द का अंबार और खामोशी
 की चादर भी ओढ़ के चले गये।
हे! हिमालय के वंशजों
लड़-प्यार में गम के बीज
क्यों बो गये।
पता था तुम्हें फिर भी
ये विरासत क्यों सौंप गये।
याद नहीं मुझे मेरे पुरखों
खुशी की नाव में तुम
गम की पतवार कब छोड़ गये।
चाहत तो प्रकाश पुंज की थी
लेकिन मौत का पुलिंदा छोड़ गये।
हे! हिमालय के वंशजों
ये कैसी विरासत छोड़ गये।

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