गौमुख से उत्तरकाशी तक के 100 किलोमीटर का इलाका ईको संेसिटिवजोन घोषित कर दिया गया है।
तमाम विरोध को दरकिनार करते हुए केंद्र सरकार ने ईको सेंसिटिवजोन को लेकर 21 अप्रैल को गज
नोटिफिकेशन जारी कर दिया है। इससे पूर्व 07 जनवरी 2013 को पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा जारी पत्र में
पूरे देश के 650 राष्ट्रीय पार्को व सेन्चुरी से लगे 10 किमी क्षेत्र को ईको सेन्सटिव
जोन घोषित किये जाने के सन्दर्भ में सभी राज्यों व केन्द्र शासित प्रदेशों को
निर्देषित किया गया है। इसमें प्रत्येक राज्य को 15 फरवरी 2013 तक नेश्नल पार्कों व
सेन्चुरियों से लगे क्षेत्रों को ‘इको सेन्सेटिव जोन’ घोषित किये जाने का प्रस्ताव मंत्रालय को भेजे जाने
की बात कही गयी थी। लेकिन प्रस्ताव नहीं मिलने पर वन्य जीव संरक्षण रणनीति-2002 के तहत अधिसूचित एवं 2011 के दिशा निर्देश लागू
माने जायेंगें। यानी कि नेश्नल पार्को एवं वन्य जीव अभ्यारण्यों से लगे 10 किमी क्षेत्र को इको
सेंसिटिव जोन घोषित माना जाएगा। उधर उत्तराखंड में गोमुख से उत्तरकाशी तक केंद्र
सरकार द्वारा जारी नोटिफिकेशन के तहत भागीरथी नदी के जल संभरण क्षेत्र का 4179.59 वर्ग किलोमीटर इलाका
परिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्र के अंतर्गत होगा और इस पूरे इलाके में अब किसी भी
तरह की गतिविधियां प्रतिबंधित हो जायेगी।
केंद्र सरकार के नोटिफिकेशन के बाद उत्तरकाशी में ईकोसंेसटिव को लेकर हल्ला मच
गया है। हालांकि गौमुख के इस डरावने मंजर से पर्यावरण मंत्रालय की चिंता लाजमी है।
जो गोमुख कभी बर्फ की दुशाला ओढ़कर भगीरथी के प्रवाह मे इजाफा करता था आज वह गौमुख
डरावनी चट्टान बन कर गया है। कही से नहीं लगता कि कभी गोमुख बर्फीला ग्लेशियर रहा
होगा। बहरहाल उत्तरकाशी मे ईको संेसंटिवजोन का मसला पर्यावरण के मुद्दो की हदों को
पार कर सियासी मसला बन गया है। दरअसल उत्तरकाशी से गौमुख तक जिले के 88 गांवों पर पारिस्थितकीय
संवेदनशीलता की आंच आ रही है। केंद सरकार के इस कदम के बाद इलाके में क्या होगा!
बेशक आम आदमी की अपनी समझ अपने अंदाज में इसका मतलब न समझ पा रही हो। लेकिन सियासी
कुनबा केंद्र के इस फैसले को अपने अंदाज में समझ रहा है और समझाने की कोशिश भी कर
रहा है। पर्यावरण का मुद्दा भगवान विश्वनाथ की धरती पर सियासी मुद्दा बन कर रह गया
है।
भाजपा के पूर्व विधायक गोपाल रावत का आरोप है कि कांगे्रस सरकार ने उत्तरकाशी
से लेकर गोमुख तक जनता को गुमराह किया है। गंगोत्री से विधायक विजयपाल सजवाण
केंद्र सरकार के फैसले पर टिप्पणी करते हुए कहते हैं कि क्षेत्र में विकास के साथ
कोई समझौता नही होगा और वह स्थानीय हितों के साथ हैं। सजवाण कहते हैं कि ईको
संेसटिवजोन अगर विकास में रोडे़ अटकाता दिखाई देगा तो वे इसे काला कानून करार
देंगे। सजवाण यह भी कहते हैं कि ये मासला अचानक एक दिन मंे पैदा नही हुआ। जब ईको
संेसटिवजोन की कवायद शुरू हुइ थी तब सूबे मे भाजपा की सरकार थी और उस वक्त के
निजाम ग्रीन बोनस की वकालत कर रहे थे। जबकि भाजपा सरकार में मुख्यमंत्री रहे डा.
रमेश पोखरियाल निशंक बताते हैं कि उन्होंने अपने कार्यकाल के दौरान इस मुद्दे पर
प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह से बैठक कर इसका विरोध किया था। पूर्व मुख्यमंत्री
पोखरियाल सवाल उठाते हैं कि इतने बड़े क्षेत्र को अति संवेदनशील करने पर केंद्र
सरकार क्या पूरे उत्तराखंड को खाली कराना चाहती है।
भागीरथी नदी के दोनों किनारों से लगे बड़े भू-भाग को केंद्र सरकार द्वारा इको
सेंसिटिव जोन घोषित किये जाने के बाद भारी विरोध को देखते हुए प्रदेश सरकार ने
कैबिनेट बैठक बुलाई। जिसमें ईको संेसिटिव जोन का कैबिनेट ने भी विरोध किया।
कैबिनेट बैठक में तय किया गया कि केंद्र सरकार को जनभावना से अवगत करा कर गजट
नोटिफिकेशन में संसोधन के लिए पैरवी की जायेगी। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने कहा
कि ईको सेंसिटिव जोन के मसले पर प्रधानमंत्री, यूपीए की अध्यक्ष सोनिया गांधी,
केंद्रीय पर्यावरण
मंत्री और केंद्रीय वन मंत्री से बातचीत कर नोटिफिकेशन में संसोधन करने के प्रयास
किये जायेंगे। हालांकि मुख्यमंत्री ने स्वीकारा कि पर्यावरण सुरक्षा और विकास
दोनों जरूरी है, लिहाजा केंद्र को ऐसी व्यवस्था बनानी चाहिए जो कि बैलेंस रहे।
सियासी मसले के बीच कुछ लोग ऐसे भी है जो राज्य सरकार को कटघरे में खड़ाकर रहे
है । उनका तर्क है कि अगर केंद्र ने 88 गांवों को दायरे मे लाने के लिए नोटिफिकेशन जारी
किया है तो सूबे की सरकार भी इससे वाकिफ होगी। हालांकि ऐसे लोगों की राय हैै कि ये
आबोहवा का मसला है सियासी मुद्दा नही। लिहाजा जन मुद्दे पर सियासत नही होनी चाहिए।
गंगोत्री से उतरकाशी तक इको सेंसटिव जोन घोषित किये जाने के बाद से एक ओर जहां
भाजपा ने इसका विरोध कर रही है वहीं धर्मनगरी हरिद्वार में संतों में काफी उत्साह
है। मातृ सदन के स्वामी शिवानंद सरस्वती कहते हैं कि मातृ सदन और संत इसे गंगा और
उत्तराखंड के पर्यावरण के लिए उठाया गया कारगर कदम मानते है। वह कहते हैं कि संतो
की यह भी राय है कि गंगोत्री की तर्ज पर केदारनाथ और बद्रीनाथ से अलकनंदा और
मंदाकनी तक वाले क्षेत्र भी इको सेंसटिव जोन घोषित किया जाना चाहिए। ताकि
उत्तराखंड के पर्यावरण को बचाया जा सके।
उत्तराखंड के भूगोल को अगर देखें तो प्रदेश में 65 फीसदी भूमि पर वन हैं और मात्र 13 फीसदी भूमि ही कृषि
भूमि है। जबकि प्रदेश में 6 नेश्नल पार्क व 7 सेन्चुरी हैं, कृषि भूमि कम होने के कारण
प्रदेश का ग्रामीण समाज जंगलों और वन भूमि पर निर्भर है। ऐसी दशा में ग्रामीणों को
पशुओं के लिए घास चारा पत्तियों से लेकर जलावन लकड़ी और आवास बनाने के लिए ईमारती
लकड़ी से लेकर पत्थरों के लिए जंगलों पर निर्भर है।
जानकारों का मानना है कि पर्यावरण एवं वन मंत्रालय द्वारा इको सेंसिटिव जोन
घोषित किये जाने से पहले प्रदेश और केंद्र सरकार ने गोमुख से लेकर उत्तरकाशी की
स्थिति, परिस्थिति
और भौगोलिक परिस्थितियों सहित भू-बंदोबस्त का अध्ययन नहीं किया। इनका मानना है कि
इको सेन्सटेटिव जोन बनाने से नेश्नल पार्कों और सेन्चुरियों से लगे क्षेत्र में
निवास करने वाले ग्रामीणों का जीवन यापन असम्भव हो जायेगा। क्योंकि ऐसी दशा में
ग्रामीण लोग ना तो पशुपालन ही कर पायेंगे और ना ही खेती या फिर अन्य कार्य कर
पायेंगे।
ईको सेंसिटिव जोन को लेकर सोसल साइट नेटवर्क पर भी लंबी बहस छिड़ी है। फेसबुक
पर वरिष्ठ पत्रकार राजीव नयन बहुगुणा लिखते हैं कि अब प्रदेश में इको सेंसटिव जोन
पर बवाल मचा है, मानो इससे नदियाँ थम जाएंगी, मकानों की छतें ढह जायेंगी, फलों से रस और फूलों से रंग गायब
हो जाएगा। सच यह है कि गंगोत्री से उत्तरकाशी ही नहीं, बल्कि उत्तराखंड का पूरा पर्वतीय
क्षेत्र ही इको सेंसटिव यानी पर्यावरण के लिहाज से संवेदनशील है। बहुगुणा आगे
लिखते हैं कि स्थानीय निवासियों के सिवा यहाँ की मिट्टी, रेत, बजरी, पत्थर, पानी और पेडों से छेड़ छाड़ का
अधिकार किसी को नहीं होना चाहिए और स्थानीय लोगों को भी अपनी जरूरतों के लिए
प्रकृति पर निर्भर रहने का अधिकार है, न कि व्यापार करने का, लेकिन ठेकेदारों और उनके रक्षित
नेताओं ने चीख पुकार मचाना शुरू कर दिया। राजीव नयन लिखते हैं कि इकोलोजी ही
हिमालय की स्थायी इकोनोमी है मिट्टी, पानी, रेत, बजरी, चूना, लकडी, पत्थर और वनौषधियों के व्यापारिक दोहन पर पूर्ण रोक लगे।
प्रदेश में पारिस्थितिकी सन्तुलन लगतार असन्तुलित हो रहा है, पारिस्थितिकी सन्तुलन के
पीछे सरकार की जनविरोधी नीतियां, खनन माफिया और वन माफिया सहित तस्कर जिम्मेदार है।
जिन्होंने पहाड़ को तबाह किया है। केंद्र सरकार द्वारा ईको सेंसिटिव जोन की घोषणा
का विरोध भी यही लोग कर रहे हैं और जनता को बरगला रहे हैं। खैर बात निकली है तो
दूर तलक जरूर जाएगी लिहाजा प्रदेश सरकार को चाहिए कि वह इस मसले पर दूरगामी सोच का
परिचय दे।
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