Tuesday, March 1, 2011

गढ़ों की गड़बडाई गणित!


(वीरू भड़ों कु देश बावन गढ़ों कु देश) लोक गायक नरेद्र सिंह नेगी के इस गीत में गढ़वाल साम्राज्य और यहां के वीर और उनकी वीरता का जिक्र है। इस गीत के माध्यम से भारत संघ में विलय हुए टिहरी रियासत के उन गढ़ों का भी जिक्र है। जिन पर गढ़वाल नरेश का शासन रहा। गढ़वाल साम्राज्य में गढ़ों का खासा महत्व रहा। बावन गढ़ों में समिटे गढ़वाल साम्राज्य के हर गढ़ का अपना वैभव और इतिहास रहा है। इन गढ़ों में लोई गढ़, बडियार गढ़, लोदन, भरदार गढ़,तोप गढ़, चौंडा़गढ़, चांदपुर गढ़, फत्यांणां, बधांण, कुंजडी, भरपूर गढ़, क्वीली गढ़, मौल्या, रैका गढ़, उप्पू गढ़, कंडारा, लोहाब, संगेला, माब, बगरी, रंवाई गढ़, नाळा, जौंट गढ़, मुंगरा, हिन्दाव गढ़, कांडा, उमटा, खैरा, तिड़िया, हैरासू, कोट, साबली, नवासू, वनगढ़, चौंदकोट, गुजडू, मासूर गढ़, रामीबदलपुर गढ़, उल्खा गढ़, लंगोर गढ़, अजमेर, नयाल, खिमसारी, सुम्याळ, देवलगढ़, रानी गढ़ संकरी, कोली, भुवनासिर, गुरू गढ़, बांगर, दसोली गढ़, है। लेकिन हाल ही में गढ़वाल रियासत के गढ़ों की संख्या पर नयी बहस छिड गई है। 1823 के सर्वे जर्नल पर निगाह डाले तो गढ़वाल रियासत में 52 नहीं बल्कि 55 गढ़ मिलते हैं। इतिहास में गहरी रूचि रखने वाले मसूरी के गोपाल भारद्वाज ने दावा किया कि इंग्लैंड के जर्नल्स ऑफ रॉयल ज्योग्राफिकल सोसाइटी से मिले तत्कालीन दस्तावेज में गढ़वाल साम्राज्य के अधीन पचपन गढ़ थे न कि बावन गढ़। इतिहासकार गोपाल भारद्वाज का कहना है कि 1817 में भारत के तत्कालीन सर्वेयर जनरल एचएल हर्बर्ट और जनरल जौन अंथोनी होजसंस ने सिरमौर-गढ़वाल की पैदल यात्रा की थी। इनका मकसद गंगा यमुना के उद्गम स्थल को ढूंढना था। उनके सर्वे बताते हैं कि जब वो लोग यात्रा पर निकले तेा उन्हें तीन गढ़ों से होते हुए गंगा के मायके पहुचे। इतिहासकार बताते हैं कि जर्नल में एचएल हर्बट और जौन अंथोनी हेजसंस ने लिखा कि वो 24 मार्च 1817 को कालसी से चले और 24 हजार पांच सौ ग्यारह कदम चलने पर आमला नदी से एक खाई नजर आयी। खाई से छह हजार कदम पर दो मंजिला बैराटगढ़ की तेवार नजर आयी। आपको बता दें कि तेवार उस दौरान गढ़पतियों का महल हुआ करता था। जो कि समुद्र तल से 6508 फुट की ऊचाई पर है। इसी किले को गोरखा सेना ने कर्नल कारपेंटर की अंग्रेजी सेना के खिलाफ इस्तेमाल किया था।इतना ही नहीं इतिहासकार बताते हैं कि बैराटगढ़ से चलकर ये दोनों सर्वेयर दूसरी जगह पहुंचे जिसे उन्होने अपने नक्शे में बस्तील गढ बताया। जो कि हिमाचल और जौनसार की सीमा के पास और देहरादून जिले में पड़ता है। तीसरे गढ़ मसूरी में बताया गया। जिसका दुधली गढ़ के नाम से जिक्र है। इतिहास कार गोपाल भारद्वाज का कहना है कि इन गढ़ों की अभी तक किसी के पास जानकारी नहीं थी। हालांकि उन्होंन ये भी बताया कि पुरातत्व विभाग बैराटगढ़ को गढ़ के रूप में लगभग अपनी स्वीकृति देता है। इतिहासकार गोपाल भारद्वाज के पास मौजूद ब्रिटिशकालीन तथ्यों ने टिहरी रियासत के इतिहास को दोबारा समझने और जानने के लिए मजबूर तो कर दिया साथ गढ़ों की संख्या पर एक नई बहस भी छेड दी है। गढ़वाल साम्राज्य के अधीन अभी तक 52 गढ़ बताये जाते थे लेकिन तीन और गढ़ों के तथ्य मिलने से गढ़ों के इस गीत के बोल बदल तो सकते हैं लेकिन गढ़वाल के तीन हजार साल पुराने इतिहास की जानकारी हासिल करना आसान काम नहीं होगा।

1 comment:

  1. thalwal jee gardhwal ke bare main aise he apne gyan logo ko is madhyam se batate raho...gud

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