आज की नारी में भले ही आगे बढ़ने की छटपटाहट हो और जीवन और समाज के हर क्षेत्र में कुछ नया कर दिखाने का सपना हो, साथ ही आधी दुनिया में नया सवेरा लाने और ऐसी सशक्त इबारत लिखने का माद्दा हो, जो महिला को अबला न रहकर सबला बना देती हो। भारत की पराधीनता की बेडियां कट जाने के बाद नारी ने भले ही अपने भविष्य के लिए जोरदार अभियान चालया हो और कई मोर्चो पर उसने प्रमाणित भी किया हो लेकिन इसके बावजूद भी महिलाएं कहीं न कहीं दोराहे पर खड़ी दिखाई देती है। महिलाओं के अधिकारों के लिए गठित महिला आयोग महज नाम के रह गये हैं। अंतराष्ट्रीय महिला दिवस सौ साल का हो गया हो लेकिन आज भी महिलाओं का सर्वांगिण विकास का दावा अधूरा है। मार्च 2010 की कैग की रिपोर्ट पर नजर डाले तो देश में महिलाओं की स्थिति दयानीय है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में साफ किया कि देश में बनाया गया राष्ट्रीय महिला आयोग पूरी तरह से भ्रष्ट है। कैग के अनुसार साल 2008-09 में आयोग के पास लगभग बारह हजार आठ सौ उन्नींस शिकायतें आयी। जिसमें से सिर्फ सात हजार पांच सौ नौ शिकायतों पर ही गौर किया गया। जबकि कार्रवाई मात्र एक हजार सत्तर पर की गई। इन आंकड़ों पर अगर गौर किया जाय तो साफ होता है कि देश में महिलाओं का सशक्तिकरण कम उनका उत्पीड़न ज्यादा हो रहा है। जबकि महिलाओं के अधिकारों की बात करते वाले आयोग महज नाम के रह गये है। बिडंबना देखिए कि देशभर के जेलों में बंद महिलाओं की दशा का जायज़ा पिछले चार सालों से नहीं लिया गया है। जो कि महिला आयोग के कार्य शैली और मानवीय सोच पर प्रश्न चिन्ह खडा कर देता है। उत्तराखंड की स्थिति भी इससे कोई जुदा नहीं है। जिस राज्य को बनाने में महिलाओं ने अपनी इज्जत तक दांव पर लगा दी थी उसी राज्य में महिलाआंे का उत्पीड़न का ग्राफ हर रोज कुलाछे भर रहा है। प्रदेश में महिलाओं के अधिकारों के लिए गठित आयोग काम का न धाम सिर्फ नाम का रहा गया है। नौ अक्टूबर 2003 को प्रदेश में राज्य महिला आयोग अस्तित्व में आया। तब से लेकर अब तक आयोग को 4641 शिकायतें मिली। जिसमें साल 2003-04 में आयोग के पास 40 शिकायतें मिली, तो साल 2004-2005 में 128 तो साल 2005-06 में 457। महिला उत्पीड़न मामला साल 2006-07 में बढ़कर 566 हुआ। तो साल 2007-08 में यह संख्या 747 तक जा पहुंचा। 2008-09 में उत्पीड़न का ग्राफ में ईजाफा हुआ और यह संख्या 913 हुई। वहीं 01 अप्रैल 2009 से 31 मार्च 2010 तक आयोग के पास 737 महिला उत्पीड़न के मामले आये। जबकि इस साल यह आंकड़ा 1053 तक जा पहुचा। साल दर साल बढ़ते आंकडे़ बताते हैं, कि प्रदेश में महिलओं की स्थिति अच्छी नहीं हैं। राज्य ने एक दशक का सफर तय कर दिया लेकिन इस सूबे में अभी तक महिलाओं की सुरक्षा के लिए एक भी नीति नहीं हैं। लिहाजा प्रदेश में महिलाओं का विकास चाहिए तो इसके लिए एक अदद स्वस्थ नीति बनानी होगी साथ ही हर क्षेत्र में महिलाओं की भागदारी भी तय होनी चाहिए। इतना ही नहीं महिलाओं के हकों के लिए गठित महिला आयोग को भी अपनी जिम्मेदारी के प्रति गंभीर होना होगा। तभी जाकर इस प्रदेश की महिलाओं का सम्मान होगा और उनका विकास होगा।
acha he bhai.
ReplyDeleteNYC ..
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