मै जिंदा हूं हुजूर...... ये गुहार उस बुजुर्ग की है, जो समाज कल्याण विभाग की धूल चढ़ी फाइलों में स्वर्ग पहुंचा दिया गया है। मामला उत्तरकाशी जिले हैं, जहां सत्तर वर्षीय मुताडू लाल समाज कल्याण विभाग की नजरों में स्वर्गसिधार गया है। जिसके चलते विभाग ने दो साल पहले सरकार द्वार मिलने वाली तमाम पेंशन बंद कर दी। इसकी शिकायत मुताडू लाल ने अपने स्तर से विभाग से की लेकिन किसी भी अधिकारी ने इस बुजुर्ग की एक नहीं सुनी। बिडंबना देखिए अपने जिंदा रहने सबूत इससे ज्यादा क्या होगा कि वो अधिकारी के सामने खड़ा हो लेकिन अधिकारी हैं कि अपने विभाग के कर्मचारियों की उस सत्यापन रिपोर्ट पर भरोसा कर रहे हैं जो शायद घर में खुद तैयार की है। सरकारी काम काज के तौर तरीके देखिए आपको भी खुद हौरानी होगी। लेकिन इन अधिकारियों को नहीं जो किसी भी आदमी को जब चाहें स्वर्ग पहुचा दें और जब चाहे वापस धरती पर बुले लें। ऐसा नहीं है कि मुताडूू लाल ने इसकी जानकारी जिला के आला अधिकारियों न दी हो लेकिन इसके बाद भी अधिकारी मुताडू लाल की रूकी पेंशन नहीं दिला पाये। इतना ही नहीं मुताडू लाल ने इसकी शिकायत जनप्रतिनिधियों से भी लेकिन मामला ढाक के तीन पात रहा। भला हो गांव के पूर्व प्रधान का जिसने इस पीड़ित की पीड़ा समझी।
जुलाई 2009 के बाद पेंशन न मिलने परेशान मुताडू लाल ने इसकी शिकायत की। कई शिवरों में अपनी अर्जी दी। लेकिन कहीं से भी मदद नहीं मिली। इस बात की खबर मीडिया को लगी तो मीडिया ने समाज कल्याण अधिकारी से इसकी जानकारी ली। मीडिया की मौजूदगी में जब विभागीय कारनामों का पता चला तो कर्मचारियों के होश गुम हो गये। आनन-फानन में जिला समाज कल्याण अधिकारी ने पेंशन जारी करने आदेश दिये। साथ ही ग्राम विकास अधिकारी को दोबारा सत्यापन करने का फरमान सुनाया। ऐसा नहीं है कि सरकारी काम-काज में ये पहली बार हुआ हो इससे पहले भी कई लोगों को समाज कल्याण विभाग ने मृत घोषित किया। लेकिन बिडंबना देखिए कि विभाग ने इससे कोई सबक नहीं लिया। लिहाजा समाज कल्याण विभाग की कार्य प्रणाली पर सवाल उठना लाजमी है।
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