Saturday, June 23, 2012

संकट में बुग्याल




मखमली-अनछुई हरियाली वादियाँ, जहां स्वर्ग की अनुभूति का अहसास होता है, संुदर, मनमोहक पहाड़ियां, पेड़ पौधों के बीच किलकारियाँ भरते-अठखेलियाँ करते वन्य जीव, पक्षियों के चहकने की सुरीली आवाज, बर्फ की लंबी पसरी हुई चादर, जिस पर सूरज का प्रकाश पड़ते ही चांदी जैसे चमक उठती है। ऐसा अहसास देवभूमि के उन बुग्यालों से गयाब हो रहा है, जिन पर कुदरत ने अपनी नेमत खूब बरपी। प्राकृतिक खजाने से भरपूर उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में मखमली मैदान, अब अपनी खूबसूरती खो रहे हैं। हिमवंत कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल और प्रकृति प्रेमी कवि सुमित्रानंदन पंत और ना जाने कितने कवियों की कविताओं में जिन बुग्यालों के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन मिलता है। वही बुग्याल धीरे-धीरे अपने खात्मे की ओर है। अगर यही स्थिति रही तो उत्तराखंड के पहाड़ों की गोद में पसरे ये हरे-भरे मैदान... किस्सों, कहानियांे, कविताओं और महज इंटरनेट की फोटो गैलरियों में पढ़े और देखे जायेंगे। विडंबना देखिए कि जिस प्रदेश में स्वीट्जरलैंड से भी ज्यादा खूबसूरती है, उसी प्रदेश की सरकार अपने यहां के प्राकृतिक सौंदर्य से अनजान है। वन संपदा का धनी प्रदेश होने के बावजूद राज्य सरकार इसका दोहन करने में आज भी असमर्थ है। नतीजतन कुछ धन्नासेठ पहाड़ की खूबसूरती को अपना धंधा बना कर, यहां के बुग्यालों का अवैध दोहन करने लगे हैं। हालांकि कुछ जागरूक लोगों ने सरकार और शासन से बुग्यालों के संरक्षण के लिए ठोस पहल की मांग की है। लेकिन अभी राज्य सरकार इस ओर कोई कदम उठाती नहीं दिख रही है।
उत्तरकाशी, टिहरी, बागेश्वर, नैनीताल, पिथौरागढ़ और चमोली में मौजूद मखमली घास के मैदान संकट में है। विश्व प्रसिद्ध आली और बेदनी बुग्याल की बात करें तो, एशिया महाद्वीप के सबसे बड़े क्षेत्रफल में फैले इन बुग्यालों में बेवजह और आप्रत्याशित तौर पर अवैध दोहन किया जा रहा है। लेकिन इसकी खबर राज्य सरकार को होने के बावजूद उन लोगों पर कोई कार्यवाही नहीं हो रही है, जो इसे अपना धंधा बनाये हुए हैं। हालांकि राज्य सरकार ने साल 2007 में बुग्यालों को प्राकृतिक धरोहर मानते हुए इनके संरक्षण की बात कही। लेकिन तब से आज तक इनके संरक्षण के लिए कोई नीति नहीं बनाई गई और राज्य सरकार की एक नेक योजना महज फइलों तक सिमट कर रह गई। जागरूक लोगों का कहना है कि जिन बुग्यालों पर प्रथम अधिकार वन्य जीवों का है, वही वन्य जीव अब यहां ढूंढे नहीं मिलते।
साल 2013 में इन्हीं बुग्यालों से होते हुए नंदाराज जात यात्रा भी गुजरेगी, ऐसे में अगर इनके संरक्षण पर ध्यान नहीं दिया जायेगा, तो ये धीरे-धीरे खत्म हो जायेंगे। लोगों का कहना है कि नंदा देवी राजजात मार्ग के बीच में पड़ने वाले बुग्यालों के आस-पास पानी के स्त्रोत सूख गये हैं। अकेले बेदनी बुग्याल में तेरह जल स्त्रोंत सूख गये हैं। लोगों का कहना है कि इसका कारण इन इलाकों में मानवीय दखल और अवैध खनन का होना है। अगर इन पर शीघ्र प्रतिबंध नहीं लगाया गया तो ये हरे-भरे बुग्याल मरूस्थल में नजर आयेंगे।
हिमवंत कवि चंद्रकुंवर बर्त्वाल ने बसंत आगमन पर बुग्याल और यहां के पहाड़ों के सौंदर्य पर लिखा था कि अब छाया में गुंजन होगा, वन में फूल खिलेंगे, दिशा-दिशा से अब सौरभ से धूमिल मेघ उठेंगे। जिस पहाड़ के सौंदर्य पर कवियों ने अपने शब्दरचना की, उसी पहाड़ की वादियों में खिलने वाले रंग-बिरंगे फूलों की मदहोश करती खुशबू, दूर तक फैली मुलायम हरी घास की चादर, दरख्तों के पीछे से दिखने वाला हिम शिखरों का संसार, सुरमई शाम में ठंडी हवाओं के झोंके और ओस की फुहारें गयाब हो रही है। अगर रही स्थिति तो आने वाले समय में पहाड़ की गोदी में फैला मखमली घास का मैदान किसी मरूस्थल में बदलते देर नहीं लगेगी। और हमारी कुल मूर्खता का गुणनफल इस सौदर्य के खत्मे का जिम्मेदार होगा। लिहाजा अभी भी वक्त है, प्रकृति के इस अनमोल खजाने के संरक्षण के लिए पहल करनी जरूरी है।

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