Saturday, June 23, 2012

सूब रहे जलóोत्र


उत्तराखंड, कुदरत ने भले इस पहाड़ी प्रदेश को खूब... खूबसूरती दी हो, लेकिन प्रकृति की नेमत से भरपूर, इस पहाड़ी प्रदेश में इन दिनों हाहाकार मचा हुआ है। बिडंबना देखिए कि नदियों के प्रदेश में ही, पानी के लिए लोग तरस रहे हैं। ये हाल उस सूबे के है, जो दूसरे प्रदेशों को पानी तो देता है, लेकिन उसके पहाड़ों के हलक सूखे हुए हैं। ये वहीं पहाड़ हैं जो ऊपर से चाहे कितने सख्त और रुखे क्यों न लगते हों, लेकिन सबसे ज्यादा पानी उन्ही के पास रहा है। भले ही नंग-धड़ंग ये काले कलूटे पहाड़ अपनी छाती पर पेड़ तो दूर नाजुक-नरम घास को भी जड़ें जमाने की इजाजत नहीं देते हो, लेकिन उनके भीतर भी पानी के असंख्य सोते छलछलाते रहे हैं। हजारों-हजार झरनों, चश्मों के संगीत से गंूजने वाला गंगा और यमुना का ये मायका अब जल अभाव से अछूता नहीं रहा। नदियों के प्रदेश के हालात बिगड़ते जा रहे हैं। सूबे में पेयजल किल्लत बढ़ती जा रही है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक सूबे के साठ फीसदी जल स्रोतों में लगातार जल रिसाव कम होता जा रहा है। जबकि पचास के आसपास सोते दम तोड़ चुके हैं। सूबे में जल स्रोतों के  सूखने की रफ्तार तेज हो चुकी है। जिसका असर साफ देखने को मिल रहा है। प्रदेश में जलापूर्ति की जिम्मेदारी जल संस्थान के पास है। और मौजूदा समय में ये विभाग पांच हजार तीन  सौ छियालीस  ग्रामीण और तिरेसठ शहरी पेयजल परियोजनाओं का संचालन कर रहा है। लेकिन बिडंबना देखिए कि इन परियोजनाओं में से 113 से आंशिक जलापूर्ति की जा रही है, जबकि 47 परियोजनाएं दम तोड़ चुकी हैं। बंद होने वाली परियोजना की वजह पेयजल स्रोतों का सूखना है। इन परियोजनाओं मंे 312 पंप आधारित परियोजना भी हैं। जिनमें से पौड़ी, चंबा और कुमाऊं में कुल मिलाकर चार परियोजनाएं ठप पड़ चुकी है। जिससे जलापूर्ति करना पेयजल महकमे के लिए चुनौती बना हुआ है। जलस्रोतों के सूखने के दोषी सीधे तौर हम खुद हैं। हमारी ही गलतियों की वजह से आज पहाड़ का आंचल सूखा हुआ है। जिसकी वहज से आज इस प्रदेश के समाज को पानी के लिए रतजगा करना पड़ रहा है। हालात ये है कि पानी के लिए लोग आपस में लड़ झगड़ रहे हैं। आम तौर पर पहाड़ी समाज को लड़ाई-झगड़े से दूर रहने वाला और शांतिप्रिय माना जाता है, लेकिन पानी के संकट से इसका मिजाज बदल रहा है। पहाड़ में संयम टूट रहा है, लोग चिड़चिड़े और परले दर्जे के स्वार्थी होते जा रहे हैं। पानी के लिए  फूट रहे सर और गाली-गलौच के बीच कतई भी नहीं लगता कि ये उस पहाड़ में हो रहा है, जिसकी भलमनसाहत का कायल सात संमदर पार से आया अंग्रेज एटकिंशन भी रहा, जिसने 19 वीं सदी में लिखे अपने ‘‘एटकिशन गजेटियर’’ में यहां के लोगों की सज्जनता की शान में कसीदे पढ़े थे। लेकिन वही पहाड़ आज पानी के लिए खंड-खंड होकर बिखर रहा है। सूबे के गहने कहे जाने वाले जंगल भी आग की भेंट चढ़ रहे हैं, बांज, बुरांश के हरे जंगल मिटते जा रहे हैं, जिसका असर सीधे तौर पर जलस्रोत पर पड़ रहा है, प्रदेश के ऐसे हालातों में रहीम याद आते हैं, उन्होने बहुत पहले चेता दिया था कि बिना पानी के सब सूना है। गजब देखिए....रहीम की काव्य रचना की पंक्तियों को हम संदर्भ सहित व्याख्या करने में लगे रहे, और ना जाने कब पानी हमारे आस-पास से सिधार गया।

No comments:

Post a Comment