Saturday, October 6, 2012

असमय बसंत का आना!


               
लगता है उत्तराखंड में बसंत ने आहट दे दी। तभी तो भ्रमरों का मद्म गुंजन सुनाई दे रहा है। भ्रमर ध्वनी टेलीवीजन रूपी फूलों के स्क्रीन से सुनाई पड़ रही हैं। कुछ भौंरे विरोधी गुंजन कर रहे हैं, लेकिन फिर भी उत्तरांखड में मौल्यार आता दिख रहा है। देखिए न यह मौल्यार ऐसे वक्त आ रहा है जब टिहरी संसदीय सीट पर उपचुनाव का फल पक रहा है। अक्सर राजनीति के धरातल पर बसंत ऐसे ही मौकों पर आता है। क्योंकि ऐसे टाईम पर बसंती भौंरों का गुंजन कम होने के बाद भी ऊंचा सुनाई पड़ता है। वो इसलिए कि प्रकृति का नियम ही कुछ ऐसा है, क्योंकि प्रकृति नहीं चाहती है कि भौंरों और फूलों में कोई बैर रहे। अपने जंगली प्रदेश के राजनीतिक धरातल पर बसंत के आने की प्रबल इच्छा है, इस बसंती बयार से कंटीली हो चुकी राजनीति फिर हरी-भरी होने के संकेत हैं। भगवाधारियों की आपसी जंग और धर्मनिरपेक्षियों की सुल्ताल बनने के टक्राहट से सियासी सल्तनत को कई गहरे जख्म दिये हैं, जिसका दर्द बसंती भौंरे केा अभास होता है। तभी तो हेमंत ऋतु में बसंत आने की चर्चा हो रही है। बसंत के अचानक और ऐसे समय आने के संकेत सियासी सामंतों को महज मजाक लग रहा है। लेकिन उनके माथे से लेकर पीठ पर पसीने की बंूदे हैं, उन्हें अंदर ही अंदर ये बात भी उन्हें खाये जा रही है कि कहीं प्रकृति रूठ गई और ऐसा सच हुआ तो फिर क्या होगा? लिहाजा बसंत को आने से रोके जाने के लिए राजनीतिक रसायन की विधा अपनानी होगी। ताकि बसंत आये नहीं बल्कि शांति से ‘संत’ ही रहे। जैसा अभी तक चल रहा है। राजनीति की स्वीकृत बगिया देहरादून में इन दिनों राजभौंरों की संख्या ना के बराबर है, ये इन दिनों टिहरी वाटिका में विचरण कर रहे हैं। क्योंकि इस वाटिका में अपना कब्जा जो जमाना है, यहां की हर डाल, शाख पर अपना वर्चास्व कायम जो रखना है। इस वाटिका पर किस झुंड का कब्जा होगा ये तो तेरह को पता चल जायेगा। लेकिन देहरादून से जो बसंती गुंजन जो सुनाई पड़ रहा है उससे एक वर्ग के भौंरों का चिंतित होना लाजमी है। इससे एक वर्ग की वर्चास्व की लड़ाई पर मानसिक तौर पर फर्क भी पड़ा है।
इस प्रकृति से वास्ता रखने और इस क्षेत्र में विशेषज्ञता रखने वालों का कहना है कि बसंत आने की खबर प्रदेश के अयन मंडल से होते हुए अचानक लोगों के घरों में दाखिल हुई, चुपचाप आई इस खबर की वास्तविकता का जब लोगों ने पता कि ये बात सौ आने सच निकली। हालांकि बसंत बयार आने की सुगबुगाहट पहले भी सुनाई देती रही लेकिन ये हल्की और परले दर्जे की थी। लेकिन अभी जो खबर अयनमंडल से लेकर अखबारी दुनियां में तैर रही है उसमें दम है। इस खबर में कई तरह के आरोप लगाये जा रहे हैं। इसमें जहर की बात भी सुनने को मिल रही है। आरोप लग रहे हैं कि इस जंगली प्रदेश का लोग भला नहीं चाहते हैं यही वहज है कि बसंत के पैरोकार को ठिकाने लगाये जाने की सुनियोजित योजना थी। लेकिन बसंत राज को जब इसकी भनक लगी तो तय हुआ कि अपना समय न होने के बाद भी बसंत लौट आयेगा। वाया एफआरआई के जंगलों से लौट आयेगा। नए भम्ररों का झुंड होगा पुराने भी भौंड से भौंड (स्वर से स्वर) मिलायेंगे और बसंती गीत गाकर फिर से जख्मी जंगली प्रदेश की जमीन पर मरहम लगायेंगे। खबर है कि इसके लिए दिल्ली एम्स के लिए पत्र व्यवहार हो रहा है, एम्स के वरिष्ठ शैल्य चिकित्सक की मुहर लगती है कि नहीं ये कहना मुश्किल है। लेकिन बसंत राज के जन्म दिन पर बड़ी बात जरूर निकल कर आयेगी। और बताया जायेगा कि क्यों असमय बसंत का आना तय हुआ। खैर हिमवंत कवि चंद्र कुंवर बर्त्वाल के शब्दों में .... अब छाया में गुंजन होगा, वन में फूल खिलंेगे।


No comments:

Post a Comment