245 बीघे की जगह सिपर्फ 45 बीघा जमीन पर दिखी अवैध् प्लाॅटिंग
प्रदीप थलवाल
उत्तराखंड अलग प्रदेश क्या बना कि सूबे में एक नई किस्म की प्रजाति भी पैदा हुई। ये प्रजाति किसी रसायन या भौतिक प्रक्रिया से नहीं बल्कि सरकारी तंत्र की कमजोरी से जन्मी, जिसे खाद-पानी देने का काम हमारे माननीय नेताओं ने किया। आलम यह है कि आज के समय में यह प्रजाति प्रदेश को चट करने में लगी हुई है। इन्हीं में एक भू-माफियाओं की प्रजाति भी है जिसकी गि( जैसी नजरें प्रदेश की जमीन पर लगी हुई है।
चमोली से लेकर चंपावत, उत्तरकाशी से लेकर ऊधमसिंह नगर , टिहरी से लेकर टनकपुर और देहरादून से लेकर नैनीताल सहित समूचे प्रदेश में भू-माफियाओं का गिरोह इस काम में जुटा है। हर जगह प्रदेश की जमीन को हड़पकर भूमाफिया बेच रहे हैं। खरीद-फरोख्त का यह धंधा दिन दूनी और रात चैगुनी तरक्की कर रह है। यही वजह है कि इस ध्ंाधे में जो भी लोग आये उन्होंने ना सिर्फ मोटा पैसा कमाया बल्कि सरकार और शासन में भी अपनी धाक जमायी। समय के साथ-साथ भू-माफियाओं का राज और डर प्रदेश में इस कदर बढ़ गया जैसे कि अंधकार में किसी दैत्य का। जिसकी परछाई मात्र से ही लोग सहम जाते हैं।
समूचे प्रदेश में भू-माफियाओं ने ना सिर्फ सरकारी जमीनों पर कब्जा जमाया हुआ है बल्कि कृषि भूमि का बिना लैंड यूज चेंज किये उसे बेच भी रहे हैं। प्रदेश में जमीनों की खरीद-फरोख्त का सूचकांक हर रोज कुलांछे भर रहा है लेकिन सरकार से लेकर शासन और प्रशासन के एक भी नुमाइंदे ने सूबे में हो रही भूमि की अवैध खरीदारी पर सावल नहीं उठाये। इसकी वजह यह भी बताई जा रही है कि इस धंधे में खुद प्रदेश के हुक्मरान शामिल हैं, ऐसे में भू-माफियाओं पर कार्रवाई की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
जमीन की खरीद फरोख्त का सिलसिला राजधानी में भी बदस्तूर जारी है। स्थिति ये है कि राजधानी और इससे सटे इलाकों में जमीन के भाव आसमान छू रहे हैं। लेकिन इसके बावजूद भी जमीनों की खरीददारी पर अंकुश नहीं लग रहा है कभी बासमती की खुशबू और लीची की मिठास के लिए पहचान रखने वाले दून से यह दोनों ही चीज गयाब हो गई है। आम के बागान चैपट हो गये हैं। भू-माफियाओं के हाथों विकासनगर बिक रहा है, लेकिन आला-अफसरों के कानों में जूं तक नहीं रेंग रही है। विकासनगर में कई आम और लीची के बागन कंक्रीट के जंगल की भेंट चढ़ गये हैं लेकिन इसके बावजूद भी प्रशासन ने कभी इस ओर ध्यान नहीं दिया।
जबकि देहरादून से सटे आसपास के क्षेत्र की देख-रेख के लिए बकायदा दूनघाटी विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण का गठन किया गया है। इस प्राधिकरण पर क्षेत्र की निगरानी रखने की जिम्मेदारी है। लेकिन आरामपरस्त असफरों की कार्यशैली का फायदा उठा भू-माफियाओं ने ना सिर्फ सरकारी जमीनों बल्कि बागानों पर अवैध प्लाटिंग कर बेच दिया है। जबकि प्रदेश के भू-कानून के अनुसार किसी भी कृषि योग्य जमीन को बिना लैंड यूज चेंज किये उसकी प्लाटिंग नहीं की जा सकती है। बावजूद इसके विकासनगर के हरबर्टपुर, परगना पछवादून स्थित वंशीपुर गांव में इस कानून का भू-माफियाओं ने जमकर उल्लंघन किया। कहते हैं कुंभकर्ण भी सिर्फ छः महीने ही सोता था मगर ताज्जुब की बात है कि साडा नाम का प्राधिकरण उक्त प्रकरण में पिछले सात साल से सोया हुआ ही है। आरटीआई का रणसिंघा उसे जगाने की कोशिश करता है लेकिन साडा उनींदी हालत में ही नोटिस भेजकर फिर से सो जाता है। बंशीपुर के बाग प्रकरण पर आरटीआई के तहत ली गई जानकारी के अनुसार प्राधिकरण को सिर्फ 45 बीघा जमीन पर अवैध प्लाटिंग नजर आयी, जबकि भू-माफियाओं द्वारा 245 बीघा जमीन पर प्लाटिंग की गई है। प्राधिकरण द्वारा आरटीआई के तहत जानकारी दी गई है कि अमुक बागान के 45 बीघा जमीन पर भू-उपविभाजन के विरू( लक्ष्मी नारायण, रमेश नारायण, हृदय नारायण, बिदुर नारायण, आखिलेश नारायण और जनार्दन को कारण बताओ एवं विकास कार्य रोको नोटिस निर्गत किया है। जो कि 17 जनवरी 2005 को भेजा गया। इसके साथ ही प्राधिकरण सूचना के अधिकार के तहत जानकारी देता है कि उसने 27 सितंबर 2012 को 11 बजे तक अपने कार्यालय में हाजिर होकर भू-स्वामी को अपने पक्ष में बात रखने का नोटिस दिया था। ऐसे में प्राधिकरण पर सवाल उठता है कि साल 2005 से अब तक उसने इस प्रकरण में क्या कार्यवाही की? आखिर इतने जिम्मेदार प्राधिकरण के अफसर कहां सोये रहे। आखिर सूचना के अधिकार के तहत जानकारी मांगे जाने के बाद ही प्राधिकरण ने उक्त भू-स्वामी को अपने पक्ष रखने की याद क्यों दिलायी? आखिर क्यों प्राधिकरण अवैध निर्माण के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने से हिचकिचा रहा है? कहीं ऐसा तो नहीं कि भू-माफियाओं के तार सीधे साडा से जुडे हों, इसीलिए पिछले सात साल तक प्राधिकरण ने इस ओर कार्यवाही करना उचित नहीं समझा हो।
वहीं दूसरी ओर दूनघाटी विशेष क्षेत्र विकास प्राधिकरण की कार्यप्रणाली पर एक और प्रकरण सवाल उठाता है। ये मामला भी विकासनगर का है, जिसमें जीवनगढ़ गांव लगभग 153 बीघा जमीन पर भू-उपविभाजन और भू-खंड पर विकास कार्य किया जा रहा है। लेकिन प्राधिकरण को इससे कोई सरोकार नहीं है। हालांकि प्राधिकरण ने सूचना के अधिकार के तहत जानकारी दी कि उसने 11 जून 2007 को भू-स्वामी को नोटिस दिया था और उसे अपना पक्ष रखने को कहा गया था। ताज्जुब की बात है कि इसके बाद भी यहां प्लाटिंग का कार्य जोरों पर है।
इन दो प्रकरणों से साफ होता है कि दून घाटी में भू-माफियाओं का कितना दबदबा है। जमीनों की खरीद-फरोख्त में लिप्त भू-माफियाओं को ना तो कानून का डर है और ना ही प्रशासन का खौफ। यही वजह है कि सूबे में भू-माफिया निश्चिंत हैं। क्योंकि उसे भय दिखाने वाले प्रशानिक अधिकारी से लेकर नेता उसकी मुट्ठी में हैं। सवाल उठता है कि क्या सरकार इन तथ्यों से बेखबर हैं? उसके अफसर क्या गुल खिला रहे हैं और उन्हें किस नेता का संरक्षण प्राप्त है या यूं कहें यह नेता-अफसर-माफिया जोड़ है, जो आसानी से नहीं टूटेगा। सबसे गंभीर और खतरनाक यह जोड़ है जिसे प्रदेश की जनता को समझ लेना चाहिए। जिस जमीन के लिए जनता ने लड़ाई लडी उसे बचाने के लिए उन्हें दूसरा आंदोलन भी न लड़ना पड़े।
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