चड्डा हत्याकांड से लेकर रेव पार्टी तक
देवभूमि उत्तराखंड का शायद चरित्र बदल रहा है! जिन आला अफसरों को तरक्की की तस्वीर बनानी चाहिए उन अफसरों का नाम राज्य के लिहाज से जधन्य कांडों में उछल रहा है। किसी का नाम हत्याकांड की कड़ी बन रहा है तो किसी का नाम नशीली महफिलों का लुत्फ लूटने वालों में शामिल हो रहा है। जिन बदनाम धंधों से माफिया के ताल्लुकात होते हैं वहां राज्य के अफसरों के नाम तलाशे जा रहे हैं। पौंटी हत्याकांड के छीटे हों या रेव पार्टी के दाग, अगर राज्य के अफसर के दामन पर तलाशे जा रहे हैं तो सवाल उठना लाजिमी है आखिर अफसरों के नाम कौन उछाल रहा है ?उन्ही की बिरादरी, या राज्य में सक्रिय माफिया ? ये सच है ! या साजिश ! देवभूमि की मासूम जनता के सामने ये यक्ष प्रश्न बन गया है।
सीन एक शूटआउट ऐट छतरपुर, लिकर किंग और माफियाओं का बेताज बादशाह पौंटी चड्डा और उसके भाई हरदीप सिंह चड्डा की आपसी रंजिश से मौत। ये खबर आते ही पूरे उत्तरी भारत में सनसनी पसर गई । यकायक आयी इस खबर पर किसी को विश्वास नहीं हुआ। लेकिन मीडिया में छाने के बाद सबको यकीन हो गया कि लिकर किंग नहीं रहा। शुरूआत में इस दोहरे हत्याकांड के लिए जिम्मेदार दोनों भाईयों के बीच संपत्ति विवाद को करार दिया गया। लेेकिन इस बीच सुखदेव सिंह नामधारी का नाम आने से मामले ने दूसरा मोड़ लिया। नामधारी का कनेक्शन सीधे भगवाधारियों से है और इस दोहरे हत्याकांड से पहले नामधारी के सीने पर उत्तराखंड अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष का बिल्ला भी टंगा हुआ था।
इस प्रकरण में नामधारी का नाम आने से जहां उत्तराखंड सरकार की सांसे फूली वहीं भाजपा और संघ सहित तात्कालीन सीएम की जान भी अटक गयी जिन्हांेने नामधारी को आयोग का पद सौंपा। किसी से भी जबाव देते नहीं बना कि आखिर प्रदेश के एक सम्मानित पद पर आसीन नामधारी शूटआउट ऐट छतरपुर की घटना के दौरान वहां क्या कर रहा था?
राष्ट्रीय मीडिया में लगातार खबरों के प्रसारण के बाद सरकार ने सुखदेव सिंह नामधारी को पदमुक्त कर दिया। दूसरी ओर भाजपा ने भी समय को भांपते हुए नामधारी की पार्टी से प्राथमिक सदस्यता खत्म कर उससे किनारे होने में अपनी भलाई समझी। इतना ही नहीं नामधारी ने हत्याकांड के तुरंत बाद उत्तराखंड के दो नेताओं और एक अधिकारी से फोन पर बात की, क्या जनता कभी इन नमों को जान पाएगी? शुटआउट ऐट छतरपुर की जांच में जुटी दिल्ली पुलिस सूबतों के आधार पर सुखदेव सिंह नामधारी और उसके गनर सचिन त्यागी को गिरफ्तार कर उनसे पूछताछ कर रही है।
इस पूरे घटनाक्रम के दौरान उत्तराखंड सहित राष्ट्रीय मीडिया में एक और खबर आती है कि शूटआउट ऐट छतरपुर से उत्तराखंड के एक आईएएस अफसर के तार भी जुडे़ हैं। इस खबर से अमूमन शंात माने जाने वाले राज्य की नौकरशाही में खलबली मच गई है। सवाल उठ रहा है पौंटी हत्याकांड से प्रदेश के वरिष्ठ आईएएस अफसर का क्या नाता है ? खबरें तो यह भी कहती हैं कि अफसर भी वंहा मौजूद था सवाल है आखिर बदनाम धंधे के सौदागर से व्हाइटकाॅलर जाॅब करने वाले अफसर का क्या ताल्लुक था आखिर वह वहां क्या करने गया था? अगर खबर में रत्ती भर भी सच्चाई है तो पूछना जायज है आखिर पोंटी से अफसर का क्या रिश्ता था ?
सीन दो, तरक्की के साथ कदमताल कर रहा देहरादून अब आधुनिकता के अंधे गलियारे की ओर बेहिसाब दौड़ रहा है। यही वजह है कि मठ-मंदिरों की जमीन पर अब ढोल-नगाड़ों का मंडाण नहीं लगता बल्कि पश्चिम की अधनंगी संस्कृति नशे में थिरकती हुई दिखती है। रेस्तरां और नाइट क्लब खुल रहे हैं, अमूमन आठ बजे के बाद सन्नाटे में पसरे रहने वाले दून की रातंे अब विभिन्न प्रकार की रंगीन लाइटों और डीजे के संगीत में मदमस्त हैं, जहां जवानी का जोश अपने उबाल के चरम सीमा पर रहता है और बेपरवाह काया बिन पेंदे के लोटे की तरह कहीं भी लुडक जाती है। कानून के नजारिये ये अपराध है लेकिन दून की शांत वादियों में कानून का कड़ा मिजाज पर भी शायद नाइट क्लब का नशा तारी है। हाल ही में दून पुलिस ने राजपुर रोड़ स्थित एक नाइट क्लब पर छापा मारा जहां रेव पार्टी चल रही थी। छापे के दौरान कई युवक-युवतियों को पुलिस ने गिरफ्तार भी किया। कुलीन वर्ग के इन युवाओं पर देवभूमि की खाकी ने सख्ती ना दिखा कर उन्हें थाने की दहलीज पर ही जमानत पर छोड़ दिया। लेकिन इस पूरे घटनाक्रम के दौरान एक और खबर बांउसर की तरह उछल जाती है कि रेव पार्टी के दौरान राज्य के अफसर भी मौजूद थे।
लेकिन सवाल उठता है कि ये खबर कैसे लीक हुई? क्या ये खबर आइपीएस बिरादरी ने उड़वाई है। या फिर इसके पीछे कोई ऐसा चेहरा या बिरादरी है जिसकी मंशा अपनी अधूरी हसरतों को पूरा करने की है।
इस जटिल गुत्थी को भले कोई समझे या ना समझे लेकिन पुलिस प्रशासन बखूबी समझता हैै। सूत्रों की मानें तो जिस आईपीएस अफसर का नाम रेव पार्टी में घसीटा जा रहा है उसकी कार्यशैली से देवभूमि के दामन को दागदार करने वाले माफिया गिरोह भी परेशान हैं। क्योंकि उस अफसर पर न तो माफिया की चकाचैंध का असर होता है न उसकी दबंगई का । इतना ही नहीं माना तो ये भी जाता है कि उस अफसर पर राज्य के नेताओं का बस भी नहीं चलता।
क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि रेव पार्टी में जो अफसर मौजूद थे, उन्होंने ही इस अफसर को षड़यंत्र के तहत रेव पार्टी में बुलाया हो, ताकि उक्त अफसर का दामन दागदार हो जाए । सूत्रों के मुताबिक माफिया की आंखों की किरकिरी बने इस आईपीएस अफसर को माफिया ठिकाने लगाने में तुले हैं और उसकी जगह एक ऐसे अफसर को बिठाने की जुगत में लगे हैं जो पूर्व में भी दून की कमान संभाल चुका है। खबरें तो यह भी कहती हैं कि राज्य में सक्रिय माफिया चाहता है कि पुलिस प्रशासन में उच्च स्तरीय पदों पर कोई पहाड़ी अफसर ना बैठे क्योंकि इससे उन्हें काफी नुकसान पहुंचता है और पहाड़ी अफसर के पहाड़ जैसे मजबूत हौंसलों से माफिया के मन मुताबिक काम नहीं होते हैं।
यही वजह है कि बड़े पदों पर माफिया तंत्र अपने चहेते अफसरों के लिए धनबल का खूब इस्तेमाल करते हैं। जानकार लोग इसे हाल ही में पुलिस प्रशासन द्वारा किये गये पुलिस अधिकारियों की अदला-बदली के रूप में देखते हैं। इसके साथ ही अंदेशा जताते हैं कि माफिया तंत्र इस काम को अंजाम देने के लिए कार्पोरेट की समझ रखने वाले आदमी पर दांव खेल रहे हैं। क्योंकि उन्हें पता है कि कैसे काम किया जाना है लिहाजा निशाना सटीक जगह लगाना जरूरी है।
इस मामले में कुछ हद तक माफिया सफल भी हुए हैं। इतना ही नहीं माफिया तंत्र जानता है कि मीडिया की भूमिका सबसे अहम रहती है, ऐसे में कुछ पत्रकारों पर माफियाओं ने अपनी कृपा दृष्टि बनाई हुई है। जानकार बताते हैं कि इसमें ऐसी प्रजाति के पत्रकार है जिनका प्रदेश के सरोकारों से कोई नाता नहीं है और पत्रकारिता उनके लिए महज रोजी रोटी कमाने का जरिया है। बावजूद इसके उनका सिक्का न सिर्फ सरकार और शासन में चलता है बल्कि ये लोग अपने तरीके से मीडिया का हव्वा बनाकर अपने और सौंपे गए काम को अंजाम भी दे देते हैं। पत्रकारों के इस गुट में अधिकांशतः पश्चिमी यूपी के लोग शामिल हैं।
खैर पूरे प्रकरण को देखकर लगता है कि इस समूचे प्रदेश में माफिया राज चल रहा है। सरकार और शासन माफियाओं के आगे नतमस्तक है। पुलिस से लेकर शासन-प्रशासन और मीडिया से लेकर सरकार में दखल होने के कारण माफिया अपने अनुसार देवभूमि की छाती को रौंद रहे हैं और प्रदेश की नीतियों को अपने माफिक तोड़ मरोड रहे हैं । सूबे में उच्च पदों पर अपने चहेतों को फिट कर रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि ये खबर कोई और उछाल रहा है माना जा रहा है कि इस खबर के पीछे अधिकारियों की बिरादरी के ही वो विभीषण हैं जिनके माफिया से ताल्लुक हैं। क्योंकि ये आईपीएस अफसर माफियाओं की आंखों की किरकिरी बना हुआ है साथ इस पर पहाड़ी होने का तमगा भी लगा हुआ है। जबकि दूसरी ओर माफिया दून का किला फतह करना चाहते हैं और बड़े शातिर तरीके से इसे अंजाम भी दिया जा रहा है।
बहरहाल सच जो भी इसका खुलासा तकनीक के इस दौर में जल्द हो जाएगा लेकिन असल सवाल ये है कि आखिर देवभूमि की छाती को माफिया का गमबूट अपने चमचे नौकरशाहों, नेताओं और गैरमुल्की खबरों के ठेकेदारों की बदौलत कब तक रौंदता रहेगा? माफियाओं ने अपनी कृपा दृष्टि बनाई हुई है। जानकार बताते हैं कि इसमें ऐसी प्रजाति के पत्रकार है जिनका प्रदेश के सरोकारों से कोई नाता नहीं है और पत्रकारिता उनके लिए महज रोजी रोटी कमाने का जरिया है। बावजूद इसके उनका सिक्का न सिर्फ सरकार और शासन में चलता है बल्कि ये लोग अपने तरीके से मीडिया का हव्वा बनाकर अपने ओर सौंपे गए काम को अंजाम भी दे देते हैं। पत्रकारों के इस गुट में अधिकांशतः पश्चिमी यूपी के लोग शामिल हैं।
खैर पूरे प्रकरण को देखकर लगता है कि इस समूचे प्रदेश में माफिया राज चल रहा है। सरकार और शासन माफियाओं के आगे नतमस्तक है। पुलिस से लेकर शासन-प्रशासन और मीडिया से लेकर सरकार में दखल होने के कारण माफिया अपने अनुसार देवभूमि की छाती को रौंद रहे हैं और प्रदेश की नीतियों को अपने माफिक तोड़ मरोड रहे हैं । सूबे में उच्च पदों पर अपने चहेतों को फिट कर रहे हैं।
ऐसा नहीं है कि ये खबर कोई और उछाल रहा है माना जा रहा है कि इस खबर के पीछे अधिकारियों की बिरादरी के ही वो विभीषण हैं जिनके माफिया से ताल्लुक हैं। क्योंकि ये आईपीएस अफसर माफियाओं की आंखों की किरकिरी बना हुआ है साथ इस पर पहाड़ी होने का तमगा भी लगा हुआ है। जबकि दूसरी ओर माफिया दून का किला फतह करना चाहते हैं और बड़े शातिर तरीके से इसे अंजाम भी दिया जा रहा है।
बहरहाल सच जो भी हो इसका खुलासा तकनीक के इस दौर में जल्द हो जाएगा लेकिन असल सवाल ये है कि आखिर देवभूमि की छाती को माफिया का गमबूट अपने चमचे नौकरशाहों, नेताओं और गैरमुल्की खबरों के ठेकेदारों की बदौलत कब तक रौंदता रहेगा?
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