विद्युत उत्पादन घटने से, ब्लैक आउट का बढ़ा खतरा
प्रदीप थलवाल
उत्तराखंड राज्य को लेकर यहां के वाशिंदों ने जो सपने बुने वो धीरे-धीरे धूमिल होते नजर आ रहे हैं। राज्य में आपार प्राकृतिक संसाधनों के होने से इसे कुदरत के किसी तोहफे से कम नहीं आंका जाता था। यहीं वजह है कि इस प्रदेश के संसाधनों पर हर किसी ने डाका डालने की कोशिश की। उत्तर प्रदेश मंे रहते हुए प्राकृतिक संसाधनों का जिस निर्ममता से दोहन किया गया था उसी का परिणाम उत्तराखंड राज्य आंदोलन रहा। राज्य आंदोलन के दौरान प्रदेश के जनमानस ने अलग सूबे के लिए कई सपने देखे, उन्हीं सपनों से एक था ऊर्जा प्रदेश का। ऊर्जा में अत्म निर्भरता का जो सपना देखा गया था वो हमारे पुरखों की उस उदासी के खात्मे का था, जिसे उन्होंने गुप और अंधेरी कंद्राओं में सहा और जिया था। लेकिन अफसोस कि राज्य गठन के बाद ऊर्जा प्रदेश का सपना खंड-खंड होता नजर आ रहा है।
जिस ऊर्जा प्रदेश का सपना प्रदेश सरकार दिखाती है उसकी असल सच्चाई देखनी है तो पहाड़ों में जाने की जरूरत नहीं है। प्रदेश के शहरों में ही आपको कई उदाहरण मिल जायेंगे। शहर में लोग बिजली की कटौती से परेशान हंै। विद्युत विभाग जब चाहे अपने मन मुताबिक बिजली कटौती कर देता है। बिजली कटौती के पीछे की अगर असल वजह देखें तो राज्य में विद्युत उत्पादन ना होना है। राज्य में भले ही कई बड़े और भारी भरकम बांध हैं और कुछ निर्माणाधीन और प्रस्तावित भी हैं। लेकिन इन सब के बावजूद राज्य में हो रही बिजली की खपत के मुकाबले बिजली पैदा नहीं हो रही है। आंकड़ों के मुताबिक राज्य में 31.07 मिलियन यूनिट की डिमांड है लेकिन उत्पादन सिर्फ 11.08 मिलियन यूनिट का हो रहा है। यानी कि प्रदेश के तकरीबन सभी बिजली घरों पर जरूरत के एक तिहाई भी उत्पादन नहीं हो रहा है।
जिससे साफ होता है कि राज्य में बिजली संकट खत्म होने के बजाय गहराता जा रहा है। ऊर्जा के जानकारों की माने तो अगर प्रदेश के यही हालात रहे तो वो दिन दूर नहीं जब पूरे प्रदेश में ब्लैक आउट का खतरा होगा। दूसरी ओर ब्लैक आउट के खतरे से बचने के लिए विद्युत विभाग ने बड़ी मात्रा में बिजली कटौती का सहारा लिया है। दिसंबर 2011 और दिसंबर 2012 के आंकड़ों पर अगर गौर करें तो दिसंबर 2011 में 19.05 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन हुआ जबकि 24 दिसंबर 2012 तक 12.02 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन हुआ। आंकड़े साफ बता रहे है कि दिसंबर 2011 के मुकाबले दिसंबर 2012 में 11.08 मिलियन यूनिट बिजली का उत्पादन कम हुआ। जबकि इसके सापेक्ष विद्युत की मांग 30.04 मिलियन यूनिट थी।
बिजली की आपूर्ति को पूरा करने के लिए निगम द्वारा केंद्र से 5.10 मिलियन यूनिट बिजली खरीदी जा रही है। साथ ही ग्रिड से 4 मिलियन यूनिट बिजली की खरीद भी हो रही है। लेकिन राज्य में विद्युत उत्पदान इतना कम हो रहा है कि इस समस्या से पार पान ेके लिए उत्तराखंड पावर कार्पोरेशन के पसीने छूट रहे हैं। बिजली उत्पादन में कमी और मांग अधिक होने के चलते ऊर्जा निगम ने बिजली कटौती का फंडा अपना लिया है। यही कारण है कि पहले गढ़वाल फिर कुमांऊ मंडल और अब शहरी क्षेत्रों में घंटो बिजली कटौती शुरू कर दी है।
इतना ही नहीं बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए ऊर्जा निगम बडे़ पैमाने पर कटौती के मूड में है और वो उन शहरी इलाकों में भी विद्युत कटौती करने वाला है जहां निगम ने कटौती ना करने का निर्णय लिया था। ऐसा नहीं है कि विद्युत उत्पादन के गिरते स्तर से पार पाने के लिए कदम ना उठाये हो, इसके लिए निगम ने बकायदा रणनीति बनाई जो कि कारगर साबित नहीं हुई। इसीलिए निगम अब विद्युत कटौती पर उतर आया है और हर रोज पांच मिलियन यूनिट रोस्टिंग कर मांग के आस-पास पहुंचने की कोशिश कर रहा है। विद्युत कटौती को लेकर ऊर्जा निगम के अधिकारियों का कहना है कि दिसंबर माह में उन्हें इतने कम विद्युत उत्पादन की उम्मीद नहीं थी। अधिकारियों का कहना है कि लगातार बढ़ती ठंड के कारण नदियों का जलस्तर गिरने से बिजली उत्पदान में भी कमी आयी।
राज्य में बिजली कटौती जोरों पर है , लेकिन प्रदेश सरकार हर मंच से सूबे में शत प्रतिशत बिजली देने की बात करती है। यह हालात उस प्रदेश के हैं जिसे ऊर्जा प्रदेश की पदवी जब-तब दी जाती है और सूबे को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की घोषणा की जाती है। विडंबना देखिए पहले ये बात भाजपा बोला करती थी और अब कांग्रेस। राज्य गठन के बाद दोनों दलों ने बारी-बारी से सूबे में शासन किया और जनता को ऊर्जा प्रदेश के ख्वाब दिखाये। सूबे को बिजली से रोशन करने के लिए बकायदा कागजों पर नीतियां बनाई लेकिन असल हकीकत में इनका फायदा माफियाओं को पहुंचाया। प्रदेश की नदियों पर बांध बनाये गये, लाखों की संख्या में लोगों को उनकी जन्म और कर्मभूमि से उजाड़ा कर उन्हें विस्थापित किया गया। बांधों से बनाई जा रही बिजली से दिल्ली जैसे महानगर ों को जगमगाया जा रहा है। लेकिन बिजली कि खातिर जिन लोगों को उनकी जड़ों से दूर किया वही लोग आज लालटेन युग में जीने को मजबूर हंै। जरा सोचिए क्या इसी ऊर्जा प्रदेश के लिए लोग सड़कों पर उतरे थे?