यूकेडी का सख्त फैसला, प्रीतम पंवार पार्टी से निलंबित
आपसी गुटबाजी से कहीं वजूद ना खो दे उक्रांद
प्रदीप थलवाल
कभी उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन की प्रमुख ताकत रही यूकेडी इस तरह कमजोर होकर बिखराव का दंश झेलेगी शायद ऐसा किसी ने भी नहीं सोचा होगा। कई दफा टूटने-जुड़ने और बिखराव से गुजरने वाला ये क्षेत्रीय दल एक बार फिर से टूट की कगार पर है। मौजूदा समय में उत्तराखंड क्रांति दल के भीतर सब कुछ सामान्य नजर नहीं है। पार्टी के अंदर छोटे-बड़े नेताओं की तलवारें खिंची हुई है। धडो़ं में विभाजित यूकेडी में अगर थोड़ी सी भी चूक हुई तो उक्रांद नेस्तनाबूद हो जायेगा और राज्य आंदोलन की ताकत रही यूकेडी के अवशेष इतिहास की पोटली में नजर आयेंगे।
उत्तराखंड क्रांति दल के वर्तमान हालात उसकी करनी के ही फल है। राज्य गठन के बाद उक्रांद के इतिहास पर नजर डालें तो जनता के बीच यूकेडी की लोकप्रियता का ग्राफ तेजी सेे गिरा है। कभी प्रदेश भर में यूकेडी की एक आवाज पर लोग अपना कामकाज छोड़ इकट्ठा हो जाया करते थे लेकिन मात्र दो दशक के अंदर ऐसा क्या हो गया कि यूकेडी ने अपनी ये खूबी खो दी। आलम यह है कि यूकेडी को लोग राज्य आंदोलन की ताकत के बजाय हिकारत भरी नजरों से देखते हैं। लेकिन दल की ऐसी स्थिति को लेकर कभी भी पार्टी के अंदर किसी ने इस ओर ना सोचा और ना ही समझने की कोशिश की और अगर कोशिशें हुई भी तो उनका नतीजा तो सिफर ही नजर आता है।
यूकेडी में जब-तब अजब-गजब फैसले लिए गये, ये फैसले पार्टी हित में जरूरी भी थे लेकिन ज्यादातर फैसलों में आपसी रंजिश की झलक नजर आती थी। अमूमन देखा जाय तो यूकेडी हमेशा कुछ ही लोगों के हाथ की कठपुतली बनी रही, वो जो भी फैसले लेते उसे पार्टी मान लेती और आम कार्यकर्ता फैसलों की सहमति पर सिर्फ गर्दन हिलाता रह जाता। इन्हीं फैसलों में से एक पिछली भाजपा सरकार को पार्टी का समर्थन देना भी था। इस समर्थन का नतीजा यह हुआ कि उत्तराखंड क्रांति दल खेमों में बंट गई और धड़ों में बंटी यूकेडी के बीच असली और नकली की जंग छिड़ी। इसी बीच प्रदेश में विधानसभा चुनाव भी हुए। यूकेडी का आपसी द्वंद पार्टी का सिंबल भी सीज करवा बैठा। नतीजा यह रहा कि चुनाव आयोग ने दो गुटों को अलग-अलग चुनाव निशान आवंटित किया।
उक्रांद ;पीद्ध और उक्रांद ;डीद्ध नाम से अलग हुए मुख्य धड़ों ने चुनावी मैदान में अपनी ताल ठोकी। जिसमें उक्रांद ;पीद्ध एक सीट लाने में कामयाब रहा लेकिन उक्रांद ;डीद्ध को जनता ने सिरे से खारिज किया। उत्तराखंड की राजनीति को करीब से जानने वालों का कहना है कि इस जनादेश ने यूकेडी को जमीन दिखा दी और संकेत दे दिये हैं कि उसे अगर क्षेत्रीय ताकत बनना है तो दल के नेताओं को धड़ों में नहीं बल्कि एकजुट होना होगा। साथ ही उन्हें ग्राम स्तर पर अपने आप को मजबूत करना होगा। क्योंकि उक्रांद का जन्म क्षेत्रीय मुद्दों को लेकर हुआ था ना कि राष्ट्रीय पार्टियों का पिछलग्गु बनने के लिए। राजनीति के जानकारों का ये भी कहना है कि यूकेडी ने मौजूदा कांग्रेस सरकार को समर्थन देकर फिर से साबित कर दिया है कि उसे सत्ता सुख भोगने की आदत पड़ गई है। राजनीतिक जानकार अंदेशा जता रहे है कि सरकार को दिया समर्थन यूकेडी के लिए कभी भी सिरदर्द बन सकता है और शायद यही वजह है कि यूकेड़ी के अंदर मचा घमासान इसी दर्द के संकेत हैं। जो अब स्पष्ट दिखाई देने लगे हैं।
हाल ही में चुनाव आयोग ने यूकेडी ;पीद्ध को असली ठहराया और जल्द केंद्रीय कार्यकारिणी गठित करने को कहा इसके साथ ही चुनाव आयोग ने यूकेडी को तगड़ा झटका भी दिया और उसकी क्षेत्रीय दल की मान्यता ही खत्म कर दी। जिससे यूकेडी के अंदर उपजी नाराजगी भी सामने आयी। छोटे और बेड़े नेताओं के साथ सबसे पहले यूकेडी कोटे से विधायक और प्रदेश सरकार में शहरी विकास मंत्री प्रीतम सिंह पंवार ने अपने केंद्रीय अध्यक्ष पर हमला बोला। प्रीतम पंवार ने त्रिवेंद्र पंवार के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए कहा कि पार्टी में अध्यक्ष की कार्यप्रणाली किसी तानाशाह से कम नहीं है। उन्होंने आरोप लगाया कि जब अध्यक्ष का कार्यकाल 25 जुलाई 2012 को खत्म हो चुका है लेकिन वो पद पर असंवैधानिक ढंग से काबिज हैं। इतना ही नहीं प्रीतम पंवार ने उत्तराकाशी जिला कार्यकारिणी को भंग किये जाने को भी सरासर गलत ठहराया। प्रीतम पंवार अपने अध्यक्ष से इतने खफा हंै कि उन्होने साफ कर दिया है कि वो त्रिवेंद्र पंवार का नेतृत्व नहीं स्वीकार करेंगे।
बताया जा रहा है कि प्रीतम पंवार यूकेडी से अलग हुए धड़ों और अन्य क्षेत्रीय दलों के साथ मिलकर एक मजबूत राजनीतिक संगठन खड़ा करने की तैयारी में है। इसे देखते हुए त्रिवेंद्र पंवार के धुर विरोध प्रीतम के पक्ष में उतर आये हैं। दूसरी ओर धड़ों में बंट रही यूकेडी के नेताओं ने शहरी विकास मंत्री के बयान को गलत ठहराया और उन्हें नसीहत देते हुए कहा कि अगर प्रीतम पंवार पार्टी हित की बात करते तो उन्होंने अपनी बात पार्टी फोरम में रखनी चाहिए थी ना कि मीडिया में सार्वजनिक करनी चाहिए थी। उधर उक्रांद के वरिष्ठ नेता और पार्टी संरक्षक काशी सिंह ऐरी ने भी अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि पार्टी को चाहिए कि वो जल्द से जल्द केंद्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाएं। इसके लिए उन्होंने पार्टी अध्यक्ष को भी पत्र लिखा और 15 दिन के अंदर अधिवेश्न बुलाने की बात कही। यूकेडी के सूत्रों की माने तो काशी सिंह ऐरी पिछले लंबे समय से केंद्रीय अध्यक्ष से नाराज चल रहे हैं। बताया जा रहा है कि दल से उन्हें भी निष्कासित कर दिया था लेकिन कुछ वजहों के चलते उनके निष्कासन को रोक लिया गया। दूसरी ओर राजनीतिक विश्लेषकों की भविष्यवाणी भी सच साबित हो रही है। जिसमें राजनीतिक पंडितों का कहना था कि अगर पार्टी का माहौल ऐसा ही रह तो त्रिवेंद्र पंवार एक और इतिहास दोहरा सकते हैं । त्रिवेंद्र पंवार ने एक बार फिर सख्त फैसला लेते हुए पार्टी के एक मात्र विधायक और कांग्रेस सरकार में शहरी विकास मंत्री प्रीतम पंवार को पार्टी से निलंबित कर नोटिस भेज दिया है। पत्रकार वार्ता के दौरान यूकेडी के केंद्रीय अध्यक्ष ने सीधे लफ्जों कहा कि पार्टी में अनुशासनहीनता बर्दास्त नहीं की जायेगी और प्रीतम पंवार पिछले समय से अनुशासनहीनता कर रहे थे। यूकेडी अध्यक्ष के इस कड़क फैसले से ना सिर्फ कांग्रेस-यूकेडी गठबंधन पर फर्क पड़ेगा बल्कि ये फैसला पार्टी के लिए भी भारी पड़ेगा। उधर उक्रांद ;डीद्ध ने भी मामले की नजाकत को भांपते हुए फिर से पार्टी का एकीकरण का राग छेड़ दिया है।
यूकेडी में बन रहे समीकरण बता रहे हैं कि प्रदेश का एक मात्र क्षेत्रीय दल अपने एक और बिखराव की ओर है। यूकेडी का दुर्भाग्य देखिए कि जन्म से ही इस क्षेत्रीय दल की नियति टूटने-संवरने और बिखरने की रही है। कमोबेश राजनीति में स्थिति बनती और बगड़ती कैसी है ये बात उक्रांद के नेता अच्छी तरह जानते हैं। लेकिन पार्टी के किसी भी नेता ने इसे गंभीरता से नहीं लिया और ना ही पार्टी के इन हालातों का मुल्यांकन करने की सोची। विडंबना देखिए कि एक बार फिर उत्तराखंड क्रांति दल हाशिये पर है। पार्टी में अंदरूनी कोहराम मचा हुआ है, एक-दूसरे पर आरोप मंढ़े जा रहे हैं कोई प्रीतम पंवार पर सवाल उठा रहे है तो कोई अध्यक्ष की कार्यप्रणाली को तानाशाही करार दे रहे है। लिहाजा दोनों से ही सवाल पूछा जाना चाहिए। प्रीतम पंवार ने अगर पार्टी के खिलाफ काम किया है तो उन्हें दंड दिया जाना उचित है, जबकि दूसरी ओर पार्टी अध्यक्ष त्रिवेंद्र पंवार को भी बताना होगा कि उन्होने पार्टी के लिए अपने शासनकाल में क्या किया? आखिर पार्टी के नेता उनसे खफा क्यों हैं? क्या वजह है कि वो पार्टी को एकजुट करने में नाकाम हैं? क्यों उनकी कार्यप्रणाली पर उंगली उठायी जा रही है?
आखिर यूकेडी के नेताओं को समझना हो वो यूपी की सपा और बसपा, पंजाब का अकाली दल, पश्चिम बंगाल की तृणमूल कांग्रेस, तमिलनाडू की डीएमके और एडीएमके, झारखंड की झमुमो की तरह क्यों नहीं बन पायी। यूकेडी नेताओं को एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी की जगह आत्ममंथन करना होगा कि उन्हें कैसे पार्टी को मजबूत करना होगा। ताकि उत्तराखंड राज्य आंदोलन की इस ताकत की बाजुएं फिर मजबूत हो सके। ?
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