Tuesday, September 4, 2012

मस्त है मुखिया, मजे में मंत्री, अड़ियल अफसर और जोकर जनता




जोकर जनता सो रखी थी, लंबी और गहरी निंद्रा में, ये नींद जाड़ों के दिनों से पसरी हुई थी, कुछ खुशी के मारे, कुछ अकुलाहट के कारण भी, जोकर जनता जो ठहरी, ठिठुरन भरे दिनों झक काले और मैल से सने बदबूदार कपड़े पहन कर वोट देने गयी थी, इस खुशी में भी सो रखी थी, कि देहरादून के सफेद पर्वत में अब उसकी पूछ होगी। लेकिन दिल्ली दुर्ग में बैठी गोरी मेम ने पहाड़ क
ी जोकर जनता को बेबकूफ बना डाला, मेम ने इटालियन सॉफ्टवेयर वाले दिमाग से शतरंजी चाल चली और इलाहबादी छोरे को पहाड़ का ठेकेदार बना दिया। इस देशी मेम के आगे हरकू-हर्षू ने खूब हल्ला मचाया, खूब डुकरताल मारी, पर मेम तो ठहरी मेम, उसे कोई फर्क नहीं पड़ा, पर अपने हरकू-हर्षू की खूब सेम-सेम हुई। इलाहबादी छोरे भी तुरत-फुरत में दून पहुंचा, और ठेकेदारी की शपथ ली, उत्तराखंड में लखनवी अंदाज में ठेकेदारी शुरू होने लगी। छोटे मोटे ठेकेदारों की पौ-बारह हो गई। सफारी शूट पहने या कभी कभी खद्दर की सदरी पहने इलाहबादी छोरे ने राजधानी में पहाड़ी सुर में राग गाना शुरू किया। इलाहबादी छोरे के बेसुरे राग से जोकर जनता जागी, तो वो अतप्रभ रह गयी। बोला, ये पहाड़ी नहीं बल्कि कोई पहाड़ी भेष में कोई छलिया है। अब जोकर जनता कुछ-कुछ समझने लगी, कि उसे ठगा गया। इलाहबादी छोरा तो कभी दून में तो कभी दिल्ली में मदमस्त है। उसके चाण-बाण और मुंसी देश-विदेश की सैर कर ठाठ-बाट कर रहे हैं। प्रदेश में अफसरों का रवैया अड़ियल किस्म का है। जनता को जोकर समझते हैं, उनकी कोई बात सुनने को तैयार ही नहीं, आलम ये है कि जो अधिकारी रिश्वत और कमिश्न जितना ज्यादा ले रहा है उसकी पूछ सरकार और शासन में ज्यादा है। लूट और झूट का खेल जमकर खेला जा रहा है। जोकर जनता खामोश है, उसके सामने उसके सपनों की हत्या हो रही है। जोकर जनता की छटपटाहट बता रही है कि उसके अंदर गुस्सा उबल रहा है, लेकिन करे क्या जनता तो जोकर ठहरी, उसे मुखिया, मंत्री, अफसर बांधना जानते हैं, काबू में रखना जानते हैं, उसके हितों की बात कर उसके उबाल को ठंडा करना जानते हैं। उनकी भिंची हुई मुठ्ठी को खोलना जानते हैं, लेकिन जब जोकर जनता विकास का सवाल पूछती है तो उसे बेबकूफ बनाया जाता है योजनाओं के नाम पर परियोजनाओं के नाम पर, राहत पैकेजों के नाम पर और ना जाने किसी-किसी प्रकार से उसे प्रलोभन दिये जाते हैं और जोकर जनता खुश होकर विकास की हरियाल का सपना बुनने बैठ जाती है और सपनांे में खो जाती है। उसकी ये तंद्रा कब टूटेगी....उसे भी नहीं पता। 

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