Thursday, September 13, 2012

चिकित्सा षिक्षा मंत्री हरक सिंह रावत के नाम रैबार


स्यमान्या दिदा, हरकू,
देहरादून मा राजी-खुषी होलू, अर राजी-खुषी भी रह्यू चैंदूू, बल राजधानी का ठाठ त निराळा होन्दा न, दिदा जमानू ह्वैगी थै, आज आखर लेखण कू मन करी, मैली त्वै तैं
 याद करूला, दिदा भारी बिपदा आयीं, कैमा अपड़ी छृई लगौंण त कोई सुणद्वि नी च, हर कोई हसण बैठुदू, बल अपड़ी छोटी-बड़ी त अपडू मा लगौंदा न। बल दिदा त्वै दगड़ी त सभी मोबैल पर छुईं लगौंदा ना पर क्या कन मैं तैंत ये खेलुंडा देखी भारी डार कर लगदी। पर दिदा आज भिंडी दिन बिटी कलम उठाई, खदरा पंडी थै पणी। मसन भी खूब काळी ह्वैगी थै। छिंतड़न फ्वांजी-फांजी साफ करी लेखण बैठ्यूं। दिदा अचकालू बसख्याळ मैना लग्यां, द्यौरू खूब गिगडांण लग्यूं। रगड़ा-भगड़ी भी खूब होंणी, दिदा जीतम उठदू, जब कुरेडू गौं-गळा तैं घेरदू। हे दिदा सुणी कि त्वैन बल अचकालू इलाहबाद का छ्वरा की खूब रेड मारी, अर सरकार की गेर पकड़िक अपडू हक मांगी। दिदा तब जैक बल त्वै तैं डोखरा-पोंगड़ा, फौजी भाई की देख-रेख और डॉक्टर बनौण वाळी जिम्मेदारी दिनी। सुण दिदा तू खूब लड़ाक भी बल, क्या कन यखमा तेरी भी गलती नी चा, लड़ण और मर ता हमार खून मा चा। अला बल त्वैन दमयंती कु परमोष करिक भी दम लिनी बल, ठीक बात चा, पर दिदा पर जै लेक मैन त्वै कैं रैबार लेखण बैठी, उत मैंन लेखी नी चा। दिदा क्या लाण त्वै मा छुईं, अब नौ-न्याळ भी ज्वान ह्वैगी। पढ़ाई-लिखै कि 24 घंटा धत रंदी लगायीं। हर वक्त बोलण लग्या रंदा कि पिता हमुन भी इंजीन्यर अर डाक्टर बणेण, मैत इंजीन्यर अर डाक्टर न त बोलण औंदू अर ना ल्यखण, तनु तू दिदा समझीगी होलू, त्वै त बल पता होलू, तू त मंत्री ल बल। मैत घर्या आदमी, डोखरा-पुंगड़ा का बारा मा ही जाणदू। क्या कन दिदा ये पहाड़ त क्वै डाक्टर नी चा, हमु स्वचण लग्यां कि हमारा ही छोरा पढ़ी-लेखी कर पहाड़ की सेवा करला। पर दिदा मैन सुणी कि हमारा छोरा तै त देहरादून मा कोई पुछदू नी च, तख त बल पैंसू की छूईं लगौंदा। हमारा छोरू की क्वै कद्र नी कररू, यनु नी की हमारा छोरू तै पडुणू नी औंदू, पर दिदा हमुम मा हर्या-हर्या नोट नी चा। दिदा हमारा नौना मेहनत करी देहदूण गै पर दिदा तख बल सबसी पहली छुईं पैसूं की लगाई, डेढ़ लाख रूप्या मांगी बल नर्सिंग का कोर्स का दिदा नरसिंह खलू तौं तै जौन हमारा छोरू कू भविश्य बर्बाद करी। दिदा क्या लाण छूई म्यरू घर आई त बुकरा-बुकरी रोई, बोली पिता हमुन यनी रण ये पहाड़, पहाड़ की भलु कर वाळू कोई नी च। सब बैरा का लोग औणा अर वौ तै जमीन भी द्यणा अर स्कूल मा दाखिलू भी। क्या कन दिदा अब तू ही बतौ, हमरी बात कोई नी चा सुणण क तैयार, त्वै पर आस छ। दिदा यनु ना ह्वाव कि तू भी हमारी ओर पीठ फेरू। तनु त्वैन धारी की लाज नी रखी, फिर भी देख्याल पहाड़ की पिड़ा अगर त्वै तैं भी त हमारा नौ-न्याळ की ख्याल रखी। लाज रखी विपदा का मर्यां अपड़ा भै-बंदू कू। खैर दिदा रूमकी बक्त ह्वैगी। अंध्यारू भी ह्वैगी नजर नी पड़णी मेरा रैबार तैं ठंग सी पड़ी अर विचार करी।
तिथि- 01 सितंबर 2012

तेरू भुला
विपदा
हाल निवास- ठेठ पहाड

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