Monday, September 24, 2012

मूल निवास पर सरकार का सरेंडर

               
मूल निवास और जाति प्रमाण पत्र का जिन्न एक बार फिर बोतल से निकल आया है। मूल निवास और जाति प्रमाण पत्र को लेकर राज्य गठन के बाद से जंग छिड़ी हुई है। लेकिन प्रदेश की किसी सरकार ने इसका समाधान निकालने की नहीं समझी। राज्य की सभी सरकारों ने इस मामले को टरकाने में ही अपनी भलाई समझी। मौजूदा कांग्रेस सरकार से प्रदेश की जनता को खासी आशाएं थी कि प्रदेश का मुखिया खुद कानून का जानकार है तो ये सरकार मूल निवाास और जाति प्रमाण पत्र को लेकर सकारात्मक भूमिका निभायेगी और सूबे के हकों का ख्याल रखेगी। लेकिन सूबे के मुखिया विजय बहुगुणा के बयान ने लाखों लोगों की उम्मीद को एक झटके में ही खत्म कर दिया। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने स्पष्ट लहजे में कह दिया है कि उनकी सरकार मूल निवास और जाति प्रमाण पत्र मामले में हाईकोर्ट के आदेशें का पालन करेगी। मुख्यमंत्री के इस बयान से जहां इस पर्वतीय प्रदेश के मूल निवासियों का गहरा झटका लगा वहीं विपक्षी दल इसे मुख्यमंत्री की कमजोर मानसिकता और प्रदेश के प्रति मुख्यमंत्री की सोच को इंगित करता है। मुख्यमंत्री ने अपने बयान में ये भी कहा कि वो मूलनिवास और जाति प्रमाण पत्र के संदर्भ में दिये हाईकोर्ट के आदेश को चुनौती देने सुप्रीम कोर्ट भी नहीं जायेंगे। सीएम के बयान से साफ होता है कि वो नहीं चाहते हैं कि प्रदेश के मूल निवासियों को उनका वाजिब हक मिले। मुख्यमंत्री के इस बयान से उसकी सहयोगी और अपने आपको उत्तराखंड के हितों की हितैषी बताने वाली यूकेडी-पी भी गुस्से में है। क्योंकि यूकेडी पी पहले से ही मूल निवास और जाति प्रमाण पत्र पर अपना रूख स्पष्ट कर चुकी है, यूकेडी चाहती है कि मूल निवास की कट ऑफ डेट राज्य गठन के दिन से ना हो बल्कि इससे पूर्व यानि कि 1950 हो। इस मामले को लेकर यूकेडी ने पहले ही अदालत की डबल बेंच में अर्जी दाखिल की हुई है। 
ये सारा प्रकरण उस वक्त हो रहा है जब प्रदेश में टिहरी उपचुनाव होने जा रहे हैं। मूल निवास और जाति प्रमाण पत्र को लेकर दिये मुख्यमंत्री का बयान दस अक्टूबर केा होने वाले मतदान पर क्या असर डालेगा ये 13 अक्टूबर को ही मालूम होगा। लेकिन दूसरी ओर यूकेडी पी ही इस मुद्दे पर गरम नजर आ रही है। यूकेडी पी सरकार में सहयोगी होने के बावजूद भी सरकार पर हमला कर रही है जिससे साफ होता है कि यूकेडी का राजनीतिक एजेंडा प्रदेश के हित में है। जबकि दूसरी ओर भाजपा इस मुद्दे को ज्यादा तूल देती नहीं दिखाई दे रही है। यानि कि भाजपा भी नहीं चाहती है कि वो भी इस पचड़े में पड़े, और अपने हाथ जला बैठे। उधर एक और क्षेत्रीय पार्टी उत्तराखंड रक्षा मोर्चा भी मूल निवास और जति प्रमाण पत्र पर हाईकोर्ट की दलीलों का अध्ययन कर लागू करने की बात कर रहा है। ऐसा नहीं है कि किसी भी दल का सदस्य नहीं चाहता है कि प्रदेश में मूल निवास की कट ऑफ डेट 1950 हो लेकिन वोट बैंक के चलते यूकेडी पी के अलावा कोई राजनीतिक दल इस फैसले को मजबूती के साथ नहीं उठा रहा है। 
उधर टिहरी लोकसभा उपचुनाव के मद्देनजर यूकेडी के पास मूल निवास और जाति प्रमाण पत्र का मुद्दा सबसे हाट है, अगर यूकेडी चाहे तो वो इस मुद्दे को उछाल कर जनता के सामने अपने आप को मजबूत कर सकती है, और लोकसभा उपचुनाव में कांग्रेस और भाजपा को टक्कर दे सकती है, लेकिन यूकेडी के शीर्ष नेता सरकार पर सीधा हमला करने के मूड में नहीं है। सरकार ने भी मूल निवास और जाति प्रमाण पत्र को लेकर सरेंडर कर दिया है। राज्य सरकार नहीं चाहती है कि वो इस मुद्दे केा सुप्रीम केार्ट में ले जाये। यानि कि मूल निवासियों को इसके लिए खुद ही पहल करनी होगी। 

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